काबुल19 मिनट पहले
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वुमन्स डे पर टोलो न्यूज के कार्यक्रम में एक महिला को शामिल करें।
8 मार्च को दुनिया के बाकी देशों के साथ अफगानिस्तान में भी महिला दिवस मनाया गया। यहां के सबसे बड़े प्राइवेट टीवी चैनल ‘टोलो न्यूज’ पर 4 महिलाएं फुल बुर्का और सर्जिकल मास्क नजर आईं। इस दौरान इस्लाम में महिला अधिकारों पर चर्चा हुई।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस प्रोग्राम को अफगानिस्तान की हुकुमत ने ही ऑर्गनाइज किया था। ये भी पहली बार हुआ कि 15 अगस्त 2021 को अफ़ग़ान हुकूमत पर कब्जा करने के बाद तालेबान ने महिलाओं को टीवी पर आने की दी।

टोलो न्यूज पर वूमन्स डे पर एक महिला के दौरान विशेष प्रसारण।
सजा का डर नहीं था
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुल चार महिलाओं ने इस स्पेशल सीन में शिरकत की। इनमें एक लंगर और तीन पैनलिस्ट थे। चैनल की तरफ से जारी बयानों में कहा गया है- हम ये दिखाना चाहते हैं कि इस्लाम के दायरे में चर्चा की जा सकती है। इसलिए इंटरनेशनल वुमन्स डे पर ऑल-फीमेल डिस्कशन टेलीकास्ट का फैसला किया।
डिस्कशन पैनल के लिए सख्त ड्रेस कोड तैयार किया गया था। उन्हें फुल बुर्का पहनकर आने को कहा गया था। इसके अलावा सर्जिकल फेस मास्क लगाना भी मेंडेटरी था। किसी भी पैनलिस्ट के बाल नजर नहीं आ रहे थे।
डिस्कशन पैनल में शामिल पत्रकार अस्मा खोग्यानी ने कहा- इस्लाम में महिलाओं को अधिकार दिए गए हैं। उन्हें शिक्षा और काम करने की इजाज़त है।

वूमन्स डे पर इस्लाम और महिला अधिकार पैनल डिस्कशन में महिलाएं शामिल हैं।
महिला समाज का अहम हिस्सा
- पैनल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जाकिरा नबील ने भी शिरकत की। लंगर द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में नबील ने कहा- हर महिला को तालीम और काम करने का हक है। कोई चाहे या न चाहे, लेकिन सच सिर्फ इतना है कि महिलाएं इस समाज का अहम हिस्सा हैं। कई बार और कुछ हालात में ये मुमकिन नहीं होता कि वो कॉलेज या शिक्षा हासिल करें। इन परिस्थितियों में वो घर पर शिक्षा पूरी कर सकते हैं।
- डिस्कशन के दौरान ऐसे किसी सवाल या टॉपिक पर चर्चा नहीं हुई, जो सभी हुकूमत की पॉलिसी के खिलाफ हो गए। वैसे सच्चाई यह है कि अफगानिस्तान के ज्यादातर पत्रकार देश छोड़ चुके हैं।
- तालेबंदी ने महिलाओं के स्कूल और कॉलेज पर रोक लगा दी है। वो किसी भी ऑफिस में काम नहीं कर सकते। इसके अलावा उनके अलावा किसी मेल गार्जियन को घर से बाहर निकलने की जरूरत है। इसके बावजूद तालेबंदी का कहना है कि वो इस्लाम के दायरे में आने वाली महिलाओं को अपना हक दे रही है।

दिसंबर में अफगान लड़कियों की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई पर बैन लगा दिया गया था।
विश्वविद्यालय पर प्रतिबंध है
- तीन महीने पहले ही अफगान लड़कियों की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। तब तालेबंदी के हायर शिक्षा मंत्री नेदा मोहम्मद नदीम ने सभी सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों को एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि अगले नोटिस जारी किए जाने तक यह नियम लागू रहेगा। तीन महीने गए हैं, लेकिन लड़कियों को स्कूल या कॉलेज जाने की मंजूरी नहीं मिली। तालेबंदी में महिलाओं के पार्क, जिम और क्रॉस पूल जैसी जगहों पर न जाने जैसे प्रतिबंध हैं।
- बीबीसी से बातचीत में अफ़ग़ानिस्तान के विश्वविद्यालय में पढ़ने वालों में से एक होस्ट ने कहा था- अलिंद ने उस एकमात्र पुल को नष्ट कर दिया, जो मुझे मेरे भविष्य से जुड़ा हुआ था। मुझे भरोसा है कि मैं पढ़ाई कर अपना जीवन बदल सकता हूं, लेकिन मेरी उम्मीदें टूट गई हैं। यहां महिलाएं इंजीनियरिंग, इकोनॉमिक्स, विज्ञान और कृषि जैसे विषय नहीं पढ़ सकते थे।

लॉकडाउन के सत्ता में आने के बाद महिलाओं की आजादी पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। इनमें से एक संगीत सुनने पर पाबंदी भी है।
ड्रेस भी कोड का पालन करें
- पिछले साल जून में जगह-जगह मुस्लिम धार्मिक पुलिस ने जगह-जगह पोस्टर लगाए थे। ये हिजाब न पहनने वाले मुस्लिम महिलाओं के समान पशु से बनाए गए थे। उन्हें सख्त तरीके से दिए गए थे कि वो छोटे या टाइट कपड़े न देखें।
- पोस्टर में लिखा है कि छोटे, टाइट और टाइट कपड़े पहनना हमारी परंपरा के खिलाफ है। लॉक डाउन ने कहा था- जिन महिलाओं के चेहरे (सार्वजनिक रूप से) ठीक नहीं होते, हम उन्हें सब कुछ बुलाएंगे और उनके लिए एक सीधा कदम उठाएंगे। पुरुषों और महिलाओं के एक ही दिन पार्क में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- इसके अलावा अकेले यात्रा करने पर रोक, लंबी दूरी की यात्रा के लिए पुरुषों के साथ जरूरी, महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस देने पर पाबंदी, हिजाब पहनना अनिवार्य और दुकानों के बाहर महिलाओं की तस्वीर वाले बोर्ड हटाने की पाबंदियां भी शामिल हैं। महिलाओं को परिवार के सदस्यों के साथ रेस्तरां में भोजन करने की अनुमति नहीं है।