प्रत्यक्ष7 मिनट पहले
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आधुनिकता की पहचान बन गए बड़े शहरों से अमेरिकी मोहभंग हो गए। अमेरिका में शहरों की सर्वोच्चता का दौर खत्म हो गया है। मिडिल क्लास के अमेरिकियों को लग रहा है कि अब मेट्रो शहरों में रहने की जरूरत नहीं रह गई है। इसलिए वे बाहरी बाहरी और छोटे कामकाज में बस जाते हैं।
बड़े शहरों को हमेशा के लिए छोड़ दिया है। हाल यह है कि 1990 के बाद पहली बार 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले अमेरिका के 56 बड़े शहरों की आबादी घटी है। इन शहरों में रियल एस्टेट कारोबार भी घाटे में चला गया। घरों की कीमत घट रही है। कोरोना के दृश्य दिखने के बाद खाली हैं और उन्हें शूटिंग के लिए जगह के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। मेट्रो सिटी के कई रियल एस्टेट प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं। फ्लैट खाली पड़े हैं।
अब आर्थिक तंत्र में केंद्रित नहीं
दरअसल, दुनिया का अर्थशास्त्र बदल रहा है। कुछ कोरोना ने बदला, कुछ तकनीक ने। अब आर्थिक तंत्र में केंद्रित नहीं हो रहा है। छोटे शहरों से भी कारोबार कर रहे हैं। वर्क फ्रॉम होम मॉडल वर्किंग सिस्टम का हिस्सा बन गया है। रिसर्च इंस्टीट्यूट ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के सीनियर फेलो विलियम फ्रेंड्स- इसकी रचना, रियल एस्टेट और एंटरटेनमेंट सेक्टर के कर्मचारी बड़ी संख्या में शहर छोड़ रहे हैं।
संपत्ति कर भी घट गई
लाखों की संख्या में शहर में रहने वाले ज्यादातर लोग पेशेवर हैं। उनकी सैलरी औसत से ज्यादा है। ये लोग बड़े करदाता थे। इनके जाने से शहरों के राजस्व में भारी कमी आई है। न्यूयॉर्क-वॉशिंगटन जैसे बड़े शहरों से मिलने वाली संपत्ति भी घट गई है। ऑफिस और होटल टैक्स में भी काफी कमी आई है। दूसरी ओर राजस्व के मामले में कस्बे धनी होते जा रहे हैं। अब मेट्रो सिटीज में रहने वाले नौकरीपेशा लोगों में सबसे ज्यादा सर्विस, स्वास्थ्य, हॉस्पिटैलिटी और फूड सेक्टर से जुड़े लोग हैं।
हालांकि दावा गलत है
बड़े शहरों और कस्बों से लोगों के शहरों में रोजगार, दोनों की डेमोग्राफी भी बदल रही है। लॉस एंजेलिस के बड़े बीच, शिकागो के नेपरविले और एल्गिन, फिलाडेल्फिया के कैमडन और विल्मिंगटन में कहीं-कहीं श्वेतों की संख्या में वृद्धि हुई है तो कुछ काउंटी में भीड़ में आ गए हैं। अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम कहते हैं- इससे अमेरिकी शहरों का बोझ कम होगा। मिथ्या घटेगी। कम आय वाले लोगों और छात्रों के लिए मेट्रो शहरों में जिंदगी ज्यादा आसान होगी।
अमेरिका ही नहीं, ब्रिटेन-नार्वे जैसे पूर्वी यूरोप के बड़े शहर भी खाली हो रहे हैं
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम कहते हैं- सिर्फ अमेरिका के शहर खाली नहीं बैठे हैं, बल्कि उत्तरी यूरोप का भी यही हाल है। स्वीडन, ब्रिटेन, डेनमार्क, फ़िनलैंड, नॉर्वे जैसे पूर्वी यूरोप के कई पेशेवर पेशेवर शहर छोड़ रहे हैं। 1980 से 2019 तक शहर के केंद्र में रहने की चाहत सबसे ज्यादा थी। पेशेवर और प्रबंधक निर्भर रूप से हाइब्रिड मोड में काम कर रहे हैं। कुछ दिन अनायास से तो कुछ दिन घर से। ऐसे में वे शहर से दूर बस जा रहे हैं।