इंदौर9 घंटे पहले
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक का मंगलवार को 78 साल की उम्र में निधन हो गया। वे दिल्ली स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। अंतिम संस्कार लोधी श्मशान घाट, नई दिल्ली में बुधवार शाम 4 बजे होगा। इससे पहले सुबह नौ बजे से दोपहर 1 बजे तक पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए निवास स्थान गुडगांव (242, सेक्टर 55, गुडगांव) में रखा जाएगा। पहली खबर आई थी कि उनका अंतिम संस्कार इंदौर में किया जा सकता है।
परिवार से मिली जानकारी के अनुसार डॉ. वैदिक सुबह पूर्वाश्रम में स्लग कर गिर गए थे। इसके बाद उन्हें करीब ही अस्पताल में ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बताया जा रहा है कि बेकार: हार्ट अटैक के कारण उनकी मौत हुई है। डॉ. वैदिक के परिवार में एक बेटा और बेटी हैं।

2014 में डॉ. वैदिक ने लश्कर-ए-तोएबा के संस्थापक और मुंबई में 26/11 को हुए हमलों के मास्टर माइंड शॉर्टिज सईद का साक्षात्कार लिया था।
डॉ. वैदिक ने 1958 में अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी। उन्होंने न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय, मॉस्को के ‘इंस्टीट्यूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन अध्ययन’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान पीएचडी की खोज की।
डॉ. वैदिक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लाइट पेपर हिंदी में लिखा है। इसी वजह से जेएनयू से उनका सफाया हो गया। 1965-67 में यह मामला इतना उलझा हुआ था कि संसद में इस पर चर्चा हुई।
बताया जाता है कि वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ 13 साल की उम्र में की थी। हिंदी सत्याग्रहियों के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। विश्व हिंदी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008) सहित कई पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन लेखकों और प्रकाशकों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक पर्यावरण की भाषा बनाया है। डॉ.वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को इंदौर में हुआ था। वे रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के बारे में भी जानकारी रखते थे।
छोटे से बाड़े से जाने वाले वैदिकजी से सरकार डरती थीं : श्रावण गर्ग
डॉ. वैदिक के साथ बचपन से ही साथ रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रावण गर्ग ने दैनिक भास्कर से जुड़े हुए शेयर की…।
वैदिकजी काफी अधिक-तीन साल बड़े थे। उनका जन्म इंदौर के एक बाड़े में हुआ था जहां अलग-अलग अलग-अलग के 100 से ज्यादा लोग होते थे। मेरा भी जन्म इसी बाड़े में हुआ था जहां कॉमन पूर्वाश्रम और शौचालय हुआ करते थे। नहाने के लिए बारी का इंतजार कर रहा था। इस तरह की सामान्य ज़िंदगी से शुरू कर उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी पहचान कायम की। भारत में कोई भी सरकार जारी हो रही है, वे उनसे डरती थीं। इसलिए उनका कभी ठीक से उपयोग नहीं किया गया। यह व्यक्ति उन पर भारी पड़ता है।
हिंदी में अंतरराष्ट्रीय मकड़ियों पर लिखने वाले को अब कोई बचा नहीं सकता
वैदिक देश के एकलौते लेखक थे जो अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी मौलिकता के साथ हिंदी में लिखते थे। बाकी कोई ऐसा पत्रकार या लेखक नहीं है जो अंतरराष्ट्रीय मसलों पर इस तरह हिंदी में लिखता है। यह सबसे बड़ा शून्य हो गया है कि कोई भी पत्रकार इस विषय पर जानकारी रखता है। वैदिकजी 1970 में ही दिल्ली शिफ्ट हो गए थे लेकिन उनके विज्ञापन हमेशा इंदौर से था। वे इंदौर आने का कोई पता नहीं लगाते थे। हाल ही में उनकी अनहोनी की शादी में वे आए थे। जब किसी कारण से आना ना हो तो फोन पर ही 30 मिनट से 1 घंटे तक बातें करते रहते थे।
नरसिम्हाराव सरकार के नशे ले सकते थे बड़ा पद
वैसे तो उनकी हर सरकार का ज़हर पैठ था, बड़े-बड़े लोग उनसे मिलने के लिए इंतज़ार करते थे। अफगानिस्तान हो या पाकिस्तान उनकी लेखनी से हर कोई उनकी सेना को जानता था। नरसिम्हाराव सरकार का वक्त ऐसा पथ था कि कोई भी बड़ा पद ले सकता था लेकिन उन्होंने न अपनी कोई ऐसी इच्छा दी, न परिवार और मित्रों के लिए ऐसा किया।
हाफिज सईद का इंटरव्यू प्लान नहीं था, अचानक नजर आया
आरोपित हाफिज सईद के इंटरव्यू को लेकर वे पूरी दुनिया में चर्चा में आ गए थे। तब बीजेपी ने जमकर इनकी आलोचना की थी। तब उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वे असल में पाकिस्तान को उनकी उपेक्षा के कारण भारत पर असर के बारे में बता रहे थे। इंदौर में हुए एक लेक्चर में भी उन्होंने अपनी बात साफ तौर पर रखी थी। डॉ. वैदिक जब पाकिस्तान गए थे तो उनका इंटरव्यू पहले तय नहीं था। अचानक उनके दिमाग में कोश आ गया कि हाफिज से पोसना चाहिए। इस तरह के आतंक से मिल लेना ही बड़ी बात थी। यह बात आज तक किसी को पता नहीं चल रही है कि वह किस तरह हाफिज सैद से मिलने पहुंचे थे।