रियाद/तेहरान11 मिनट पहले
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बीजिंग में दोनों देशों के बीच हुए समझौते की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है।
वर्ल्ड डिप्लोमैसी के फंसे से शुक्रवार का दिन अहम रहा। ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। 2016 के बाद दोनों देश एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर से खोलने के लिए राजी हो गए।
अमेरिकी टीवी चैनल CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान और सऊदी अरब के बीच यह बातचीत कई महीने से चीन की राजधानी बीजिंग के एक होटल में चल रही थी। हालांकि, चीन और सऊदी अरब ने अब तक इस बारे में कोई रूपरेखा जारी नहीं की है।

ईरान ने सऊदी अरब को कई बार ख़तरे के नतीजे नतीजों की धमकी दी थी।
ईरान ने की पुष्टि, सऊदी अरब-चीन खामोश
- ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी आईआरएनए के अनुसार- मुल्क की सर्वोच्च राष्ट्रीय परिषद के प्रमुख अली शमकानी की चीन में अपने काउंटरपार्ट मोद बिन मोहम्मद अल अबान से मुलाकात हुई। इस दौरान कृषि पर हस्ताक्षर किए गए।
- इस मामले में हैरान करने वाली बात ये है कि ईरान की तरफ से बयान जारी किए जाने के कई घंटे बाद भी सऊदी अरब, चीन और अमेरिका खामोश हैं। इसके कई मायने हैं। दरअसल, सऊदी अरब सरकार को डर है कि इस समझौते से चीन की वजह से अमेरिका नाराज हो सकता है, क्योंकि इस मामले में उस सऊदी सरकार ने अंधेरे में रखा है, जिसका 90% हथियार और तमाम टेक्नोलॉजी अमेरिका की ही है।
- चीन ने शायद इसलिए बयान जारी नहीं किए, क्योंकि उसे लगता है कि अमेरिका उसकी व्याख्या को अब फ्रैंक साथ दे सकता है। घर से साउथ चाइना सी और हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में। ताइवान में तो अमेरिकी युद्धपोत पहले ही चालित किए गए।

2017 में ईरान की ओर से खतरे को देखते हुए अमेरिकी दबदबे को यहां रोक दिया गया था।
7 साल बाद अमन की आशा
ईरान शिया जबकि सऊदी अरब में मुस्लिमों का बहुमत वाला देश है। सऊदी अरब को हमेशा डर रहता है कि अगर ईरान एटमी हथियार हासिल कर ले तो उसके लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। दूसरे तरफ, सऊदी अरब की सीमाओं में यमन के हूती विद्रोही हमले करते रहते हैं और उन्हें ईरान सरकार समर्थन और हथियार देती है।
2016 में सऊदी अरब ने एक शिया धर्मगुरू को सजा-ए-मौत दी थी। इसके बाद तेहरान में मौजूद सऊदी दूतावास पर ईरानियों ने हमला बोल दिया था। इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्ते पूरी तरह खत्म हो गए थे। राजदूत भी बंद हो गए थे।
ईरान ने सऊदी अरब और यूएई के खिलाफ नया साजिश रची। उसने इन दोनों के दुश्मन यमन के हूती रिबेल्स को हथियार और दूसरा फ़ेज़ लाइटज आधिपत्य कर लिया। उनकी मदद से पूल और छत के किनारे और रिफाइनरियों पर हमले किए गए।

सऊदी क्राउन प्रिंस और पीएम सलमान ने ईरान से समझौते के लिए अमेरिका से विरोध जताया।
कई समस्याएँ टकराईं
- सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुस्लिमों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।
- इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग तस्करी के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की वर्जिन पर पहुंचे। इस दौरान अमेरिका सऊदी अरब की मदद के लिए आया।
- तीन साल पहले ईरान परमाणु संधि से बाहर होने और तेहरान पर प्रतिबंध लागू करने के लिए अमेरिका को सब कुछ सिखाना चाहते थे। इसके लिए हुई अफसरों के बीच इस बात की सहमति बनी कि अमेरिका से सीधे हमले में उलझने के बजाय उसके सहयोगी सऊदी अरब को सब कुछ सिखाएं। इसके लिए यमन के हूती विद्रोहियो को लगातार मदद दी गई। उनसे संपर्क किए गए।
- 2014 में बीबीसी ने एक रिपोर्ट में कहा- जल्द ही सऊदी अरब के पास परमाणु बम होंगे। यह पाकिस्तान द्वारा बनाया जा रहा है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम से निपटने के लिए पाकिस्तान परमाणु मानकों में पैसा लगाया है।
- 2017 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सऊदी अरब में सेना को सक्रिय करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको की दो रिफाइनरियों पर ड्रोन और मिसाइलों के हमले के बाद यह निर्णय लिया गया। इसकी जिम्मेदारी यमन के हूती बोझ ने ली थी, लेकिन अमेरिका और सऊदी अरब दोनों ने इसके लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया।
- एक बातचीत में सऊदी अरब के प्रिंस सलमान ने कहा था- हमारे तेल संयंत्रों पर हमला ईरान की तरफ से जंग की शुरुआत है। इसके बावजूद हम ईरान के साथ विवाद का हल डिप्लोमैसी से चाहते हैं। अगर जंग हुई तो दुनिया की पारिस्थितिकी व्यवस्था हो जाएगी।