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गहलोत ने क्यों लिया सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा: जहां पार्टी कमजोर, वहां भी नई जिले, 2023 में सीएम के चेहरे को लेकर संकेत साफ?

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  • जहां पार्टी कमजोर, वहां नए जिले भी, 2023 में सीएम फेस का फैसला गहलोत ने क्यों लिया सबसे बड़ा राजनीतिक जोखिम: जहां पार्टी कमजोर, वहां

रायपुर38 मिनट पहलेलेखक: किरण राजपुरोहित, राज्य राज्य (राज स्थान)

राजस्थान में शुक्रवार शाम तूफान और बारिश के साथ ‘सियासी सीजन’ भी बदल गया। एक साथ 19 की घोषणा ने क्षेत्र में सियासी स्टॉर्म ला दिया। हर किसी का सवाल था, क्या ये सच है? आजादी के बाद पहली बार एक साथ 19 नए शेयरिंग की घोषणा को अशोक गहलोत के मास्टर के रूप में देखा जा रहा है।

चुनावी साल में गहलोत सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जिस तरह से बजट को तीन बार जुने की कोशिश की, ये उनकी लंबी योजनाओं का हिस्सा है। अगर कोई सामान्य सा सवाल पूछा जाता है कि बजट कितना बार पेश होता है? जवाब एक बार होगा, लेकिन गहलोत ने बजट को तीन बार अवसरों में बदला। पहली बार बजट पेश किया गया। दूसरा, बजट रिप्लाई और तीसरा वित्त और विनियोग (एक रेंकियन बिल) के जवाब में। तीन बार बड़े ऐलान करके गहलोत ने सबके सामने चौंका दिया। आम तौर पर बजट के दिन ही सरकार बड़ी घोषणाएं करती हैं, लेकिन इस बार राजस्थान में तीन बार बड़ी घोषणाएं की गईं।

पिछले साल के बजट में पुरानी पेंशन की घोषणा जिस तरह से सही थी, उसी तरह 19 बार लेटर की घोषणा।

चुनावी साल में सभी सरकारें लोकलुभावन बजट पेश करती हैं, लेकिन इस बार बचत, राहत और वृद्धि के साथ मन-भावन बजट की जो थीम गहलोत ने तैयार की थी, उसने निर्णय को चुप कर दिया। किसी के पास कोई जवाब नहीं बचा है। हालांकि यह भी सच है कि बजट को धरातल पर उतारना इतना आसान नहीं है, क्योंकि बहुत कम समय बचाना है।

ख़ास गहलोत की इन घोषणाओं के क्या मायने हैं? इन सवालों के जवाबों से समझते हैं

एक साथ 19 स्मार्टफोन की घोषणा वास्तव में क्या है?

  • अशोक गहलोत के पिछले सवा चार साल के कार्यकाल को देखें तो वे हर बार बजट में चौंकाया है। आजादी के समय राजस्थान में 26 जिले थे, जो अब 33 हैं। नए जाम की घोषणा करना सभी साझा खतरे मानते हैं, लेकिन ये जोखिम गहलोत ने लिया है। वे 19 नए पहचान के जिस तरह से रेंक्युशन बनाते हैं। उससे कांग्रेस ‘गहलोत है तो मुमकिन है’ की तरह शासकों को पेश करती है।
  • गहलोत ने राजनीतिक दार्शनिक के साथ दृष्टिकोण को भी साधा है। पार्टी जहां कमजोर होती है, वहां भी घुसपैठ की घोषणा की जाती है। ब्यावर में लंबे समय से कांग्रेस की जीत नहीं हो रही है। भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत पैदल यात्रा कर चुके हैं। भाजपा राज में भले ही जिला नहीं बना, लेकिन गहलोत सरकार में जिला बनते कांग्रेसी जुएगी।
  • पाली, जालोर और सिरोही में भी पार्टी बेहद कमजोर है। पाली को मंडल मुख्यालय बनाना और सांचौर को जिला बनाना भी इसकी कोशिश है।
  • फलोदी, बालोतरा को भी जीवित रहने वाले गहलोत ने जननायक की अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश की है।
  • बजट पास होने वाले दिन मिलने की घोषणा से सभी को निरुत्तर कर दिया जाता है। बीजेपी के पास अभी इसकी काट नहीं है।

चुनाव में आठ महीने का समय बचाना है, क्या गहलोत राज में जिले बन जाएंगे? या कोई खतरा है?

कोई खतरा नहीं है। गहलोत ने बजट में इसके लिए 2000 करोड़ का प्रावधान किया है। ऐसे में जिले बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और कांग्रेस की क्रेडिट लेगी, हालांकि जंपिंग प्रक्रिया में समय लगता है।

क्या जिले बनने से राज्य की स्थिति बिगड़ेगी? क्या फायदा और नुकसान होगा?

जिले बनने से फायदे और नुकसान कम होते हैं। कई मौके बनेंगे। राजस्थान की आबादी 7 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। पिछले 30 वर्षों की बात करें तो जनसंख्या की संख्या हो गई है, लेकिन जिले में केवल 7 ही हैं। वर्ष 2008 के बाद राज्य में कोई नया जिला नहीं बना, लेकिन बड़े नेटवर्क में प्रशासन के सभी स्थान समान फोकस नहीं पाते हैं। नए लेटर से गुड गवर्नेस और फास्ट सर्विस होती है। यह निगमन से ही संभव है। हालांकि नई लोकतांत्रिक घोषणाओं से राजस्थान की आर्थिक स्थिति खराब होने का दावा किया जाएगा।

गहलोत के बजट के लिए क्या रणनीति है?

गहलोत ने आक्रामक चुनावी रणनीति अपना ली है। वे एक तरफ लोगों से जुड़ी बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। दूसरी तरफ उन्होंने भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे से बातचीत के लिए भी धार्मिक स्थलों को अपने निशाने में शामिल किया है।

जयपुर के आराध्य गोविंददेव जी मंदिर को महाकाल के चलन पर विकसित करने का फैसला अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की छवि से बाहर आने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। राज्य के अन्य प्रमुख मंदिरों को विकसित करने का ऐसा डिटेल प्लान पहली बार कांग्रेस के योजनागत रूप में दिखा है।

जूलरी के अलावा गहलोत कुछ और भी बताते हैं?

निशाने के एलान के आगे कई बड़े ऐलान छिपे हुए हैं, लेकिन उन्होंने महिलाओं को राखी पर 40 लाख स्मार्ट फोन देने की बड़ी घोषणा की है। गहलोत ने बजट के दिन अति से जुड़ी महिलाओं को 500 रुपए में सिलेक्शन की घोषणा की थी। इसके बाद ये बड़ा ऐलान किया है। राजस्थान में इस बार संख्या में महिलाओं का 2.52 प्रतिशत भेदभाव देता है, ऐसे में यह उनकी साधना की रणनीति का हिस्सा है।

महिलाओं का ध्यान गहलोत इस साल के मूल बजट में राजस्थान रोडवेज की यात्रा कर पाती हैं। सरकारी बसों में अब राजस्थान की सीमा में महिलाओं का बस किराया आधा लगेगा।

सरकार क्या घोषणा की दोहराती है?

अभी ये कहना पाना मुश्किल है, क्योंकि चुनाव में कई फैक्टर काम करते हैं। भोपाल गहलोत ने वचन की घोषणा करके देखने को तो मना लिया, लेकिन जो जनता से नाराज है, वह इस घोषणा से कितने फैसले लेंगे, ये अभी नहीं जा सकता।

​​क्या गहलोत के नेतृत्व में ही चुनावी लड़ाई होगी?

सबसे बड़ा सवाल यही है, लेकिन इसके लिए आपको शुक्रवार को एक अभियान बिल से पहले बीजेपी के मारियो गेम के काउंटर पर वीडियो से भरना चाहिए। जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने इस गेम का प्रचार किया, इससे लगता है कि मारियो गेम की तरह पार्टी को मारने का संकेत दे दिया है।

राजनीतिक विश्लेषणात्मक मान रहे हैं कि अगर पार्टी को गहलोत का चेहरा आगे नहीं रखा जाता है तो इतना महत्व नहीं देता। अब वे जिस तरह सियासी पत्ते फेंक रहे हैं, वह हर किसी के बस में नहीं खेल रहे हैं।

क्या बता रहे थे अशोक गहलोत के हाव-भाव?

सबसे पहले गहलोत की बॉडी लैंग्वेज की बात कर रहे हैं। याद कीजिए जब 10 फरवरी को अशोक गहलोत राज्य का बजट पढ़ रहे थे, तब शुरुआत में एक पुराना पन्ना कनेक्शन से चिपकना उनके चेहरे पर दिखाई दे गया था। इसके बाद उनके फ़्लो में उनकी रोचक शैली की कमी नज़र आई। बजट रिप्लाई और इसके बाद एस्पिरेशन बिल के दौरान शुक्रवार को उनकी बॉडी लैंग्वेज में अलग कॉन्फिडेंस नजर आ रहा था।

गहलोत ने अपने इस बड़े कदम से आलाकमान को क्या मैसेज दिया?

कांग्रेस आलाकमान को राजस्थान में विरोधी पार्टी से ज्यादा अपने ही लोगों ने चिंता में डाला है। अशोक गहलोत ने बजट रिप्लाई से टैगड़ा मैसेज कांग्रेस आलाकमान को दिया है। उन्होंने एक बार फिर बताया कि सभी को लेकर चलने की कला क्या है। उन्होंने एंटी इंकमबेंसी को रोकने का प्रयास भी किया है। गहलोत ने इस राजनीतिक कदम से संबंधित को ही जवाब नहीं दिया है, बल्कि अपनी ही पार्टी में चल रही सामान्य राजनीति पर भी लगाने का प्रयास किया है।

अब गहलोत के सामने बड़ी चुनौती क्या?
मैं कैसे खत्म करूं?
1. राजस्थान में 60 जाली की मांग हो रही थी। ऐसे में जहां जिले घोषित नहीं किए गए हैं वहां दुखी देखने वाले होंगे। कुछ नए और जन प्रतिनिधियों ने कल ही इसकी चेतावनी दी है। ऐसे में देखना होगा सरकार कैसे इसे Control करती है?

2. सरकार ने पिछले साल मोबाइल देने की घोषणा की थी, अब राखी पर देने की बात कह रही है। 40 लाख मोबाइल एक साथ कैसे संभव होगा? नहीं मिलने पर जनता में यह दुख का कारण भी हो सकता है।

3. बजट पास हो चुका है। सरकार के पास बेहद कम समय में बचाव है। इस पूरे बजट को धरातल पर लाना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि जिस तरह का सरकारी सिस्टम है, उसकी योजनाओं को धरातल में आने में समय लगता है। तय करें।

4. पार्टी में आपसी गुटबाजी चरम पर है। सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की बात थी, लेकिन अब उन्हें किस अनुपात में तय किया जाएगा, यह बड़ा सवाल होगा।

5. कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है। आगे बढ़ते और कई मंत्रियों की खराब आदतों से भी मुश्किल होगी।

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रक्षाबंधन से 40 लाख महिलाएं स्मार्टफोन:नए जिले में बनाने के साथ हर वर्ग को साधन, क्या गहलोत विल एंटी-इंकम्बेंसी को रोकेंगे?

राजस्थान में पिछली चार चुनावों से सत्ता विरोधी लहर के कारण कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई। हर बार सत्ता बदलने की परंपरा को इस बार अशोक गहलोत को तोड़ने का दावा कर रहे हैं। वे हर वर्ग के पढ़े लिखे हैं।

यही कारण है कि इस बार के बजट में उन्होंने किसानों, महिलाओं, कर्मचारियों, युवाओं और मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए सरकार के झंडे को पूरी तरह से खोल दिया। ताकि आठ महीने बाद चुनावी मैदान में गिरकर कांग्रेस को कहीं भी एंटी-इंकम्बेंसी की मार नहीं जीतनी पड़े।

भाजपा जिन मुद्दों को हवा दे रही है, उनका आधिपत्य होने से पहले सभी ट्रिक्स को साधने की उनकी कोशिश को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। (यहां पढ़ें पूरी खबर)

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