रायपुर2 घंटे पहलेलेखक: उपेंद्र शर्मा
ग्लोबस में सबसे अधिक देखा जाने वाला इब्राहिम 1990-95 के बीच राजस्थान में भी अपना एक अड्डा बनाना चाहता था…लेकिन नहीं बना।
जयपुर के एक नामी स्कूल के बच्चों की अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल करने की बड़ी साज़िश थी, जो नाकाम हो गई।
केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के बेटे का अपहरण करने वाले 3 खालिस्तानी समर्थक स्विट्जरलैंड चले गए थे, लेकिन वापस आ गए।
इन तीनों मामलों को एक्सपोज करने वाला एक ही व्यक्ति था-हुकुमसिंह…आप में से बहुत से लोगों ने अपना नाम कभी नहीं सुना होगा। इसकी वाजिब वजह भी है, क्योंकि हुकुमसिंह ने जो काम किया, उनके बारे में उनके करीबी भी नहीं जानते थे।
एयर फोर्स में पायलट के रूप में करियर शुरू करने वाले हुकुम सिंह अब हाई कोर्ट में दावे की दलीलें दे रहे हैं, लेकिन पायलट और वकील के अलावा हुकुमसिंह की एक पहचान और भी है… जासूस। जीवन के 40 साल उन्होंने वैसे ही जासूस का काम किया।
2005 में सिंह को 40 साल की गुप्त सेवाओं के लिए भव्य राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भी सम्मानित किया गया था।
भास्कर ने हुकुमसिंह से बात की, जिसमें उन्होंने अपने करियर के कई रोचक और चौंकाने वाले मामलों के बारे में बताया।
पढ़ें पूरा साक्षात्कार…
सही पायलट करियर की शुरुआत करने वाले हुकुमसिंह 40 साल की सीक्रेट सर्विस में हैं। सिंह वर्तमान में स्थित उच्च न्यायालय में दावा करते हैं।
भास्कर : आप पायलट थे, जासूस कैसे बन गए?
हुकुमसिंह : मैं जयपुर के कॉमर्स कॉलेज में पाठ था। 1980 में एनसीसी एयर विंग के माध्यम से मेरा चयन एयर फोर्स में हुआ। वहां मैं पहले पायलट बना और बाद में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर। मेरा काम फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर मेरा काम ट्रेनी पायलट को तैयार करना था। वहीं से मुझे पुलिस से जुड़ी गुप्तचर सेवा में शामिल होने का मौका मिला।
गुप्तचर बनने से पहले हुकुम सिंह एक ट्रेनर पायलट भी थे। साल 1980 की यह तस्वीर कोटा में फ्लाइंग एक्टिविटी के दौरान है।
भास्कर 1995 में केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के बेटे राजेन्द्र मिर्धा का अपहरण करने वाले तीन स्कीस्तानों को कैसे पकड़ा गया?
हुकुमसिंह : जब केंद्रीय मंत्री मिर्धा के बेटे का अपहरण हुआ तो भरे हुए विवरण भैंरोसिंहावत व केंद्र सरकार ने कई सी टीमों को इस मामले के लिए कार्रवाई की। उनमें से मैं भी एक टीम में था। मिर्धा के अपहरण खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (KLF) से जुड़े लोगों ने किया था। जयपुर में हुए पुलिस मुठभेड़ में एक कमजोर समर्थक नवनीत सिंह कादिया पर हमला हुआ, लेकिन उनके तीन साथी मर्सी सिंह लाहौरिया, हरनेक सिंह भप और सुमन सूद पहुंच गए। मैंने और मेरे एक साथी ने छह महीने तक उन तीनों की खोज की। यहां-वहां जासूसी की, तब जाकर एक शब्द हमारे हाथ लगा। वो शब्द था निक्कू दा ढाबा।
भास्कर : क्या था यह निक्कू दा ढाबा ?
हुकुमसिंह : इस ढाबे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। काफी दिनों की कोशिशों के बाद एक लीड मिली कि यह ढाबा जयपुर-दिल्ली हाईवे पर कहीं है। मैं एक सिंक पर बहुत धीमी गति से 270 किलोमीटर तक गया और एक-एक ढाबे को देखा। किसी ढाबे पर निक्कू दा ढाबा नाम नहीं था।
उसी दौरान एक ढाबा मिला, जिसके मालिक सरदार बछत्तर सिंह थे। उनके एक बेटे का नाम निक्कु था, इसलिए ट्रक ड्राइवर और दूसरे लोग उस ढाबे को निक्कू दा ढाबा कहते थे। इस ढाबे वाले से वे तीनों निचले दल के समर्थक संपर्क में थे।
उन लोगों के दिखने के लिए मैं और मेरा एक साथी उस डगबे में सेवक (कुक) बनकर काम करने लगे। किसी को हम पर शक न हो, इसलिए हमने खुद को गुर्जर परिवार से बताया। बा-कायदा एक गुर्जर परिवार की फाइल्स का इतिहास तैयार करें। गुर्जरों से जुड़े सभी ऋतिक-रिवाज और संस्कृति से जुड़ी चीजें सीखीं। गुर्जर समाज के ही एक बुजुर्ग व्यक्ति की मदद से हमें ढाबे पर नौकरी मिली।
ढाबे पर काम करते हुए कई दिनों तक छोटा-छोटा मुखौटा। एक दिन में बड़ी बढ़त मिली, जब पता चला कि तीनों सहयोगी एक-दूसरे से अलग हुए हैं। जरूरी दस्तावेज, टेलीफोन रिकॉर्ड आदि जुटाए। हमारी सूचना के बाद राजस्थान सहित केंद्रीय जांच एजेंसियां सक्रिय हुईं और जिनेवा से इंटरपोल के माध्यम से उन तीनों को भारत लाया गया।
सिंह को उनकी गुप्त सेवाओं के लिए वर्ष 2005 में रिक्त राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
भास्कर : आपके करियर में एक मामला इब्राहिम से भी हुआ है, जिसका जयपुर से भी संबंध था, उसके बारे में बताएं?
हुकुमसिंह : टेबल इब्राहिम 1990 से 1995 के बीच मुंबई के बाहरी राजस्थान में अपना एक हाइड आउट और फुट होल्ड बनाना चाहता था। इसके लिए उसने रायपुर परकोटे में स्थित दो बुजुर्गों को खरीदने की तैयारी कर ली थी। इन रहने वालों के नाम हैं लक्ष्मी मिष्ठान स्टोर (लैंबी) और होटल पिंक सिटी। हमने इस सूचना को जब ब्रेक किया तो सरकार ने सीधे दखल देकर होटलों की बिक्री रुकवा दी थी अन्यथा जयपुर भी एक विज्ञापन बना।

टेबल इब्राहिम ने 1990 से 1995 के बीच जयपुर में 2 होटल खरीदने की तैयारी कर ली थी, ताकि राजस्थान में भी उसका एक ठिकाना निकल जाए।
भास्कर : टेबल के राइट हैंड शॉट के खिलाफ भी आपने कार्रवाई की थी?
हुकुमसिंह : प्रतापगढ़ (दक्षिणी राजस्थान में) में इब्राहिम का राइट हैंड छोटा अपना स्थान बना रहा था। छोटी टेबल मंदसौर (मध्यप्रदेश), चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ (राजस्थान) में अफीम का तस्कर भी रहा था। गुजरात के कांडला बंदरगाह से उसके ठिकाने पर दो ट्रक हथियार आए थे। उसकी ठिकाने का हमने पता लगाया और कार्रवाई की। हम उस समय खालिस्तानी समर्थक परमजीत सिंह की तलाश में उस इलाके में गए थे, लेकिन किस्मत से छोटी मेज के इस ठिकाने का पता चला।
भास्कर : जैसा कि एक जहरीला फोटो कांड जयपुर के एक नामचीन स्कूल से आरती किया था, जिसे आपने निवेश किया था?
हुकुमसिंह : राजपुर में भी एक जहरीली फोटो ब्लैकमेल कांड जन्म ले रहा था। इसका वीकली टाइम पर पता चला था। जिसके कारण यह बहुत खतरनाक रूप में नहीं पाया गया। पोलोविक्ट्री सिनेमा के पास एक फोटो स्टूडियो था, जहां से इस साजिश को अंजाम दिया जा रहा था।
सिंह को लगभग हर तरह का हथियार चलता है, लेकिन वे निहत्थे लड़ने की कई कलाओं में भी पकड़ रखते हैं। मार्शल आर्ट में वे ब्लैक बेल्ट भी हासिल कर लेते हैं।
भास्कर : अवैध धर्म परिवर्तन और लव जिहाद से जुड़े कुछ मामलों में भी आपने जासूसी की थी। क्या सच में ऐसा होता है? इसकी फंडिंग कहां से होती है?
हुकुमसिंह : अवैध धर्म परिवर्तन और लव जिहाद कड़वा सच है। जयपुर के पास ही ईसाई मिशनरियों की बड़ी-बड़ी बातें चल रही हैं। साल 1990-92 में भी जयपुर के आस-पास अमेरिका की एक संस्था यह काम कर रही थी। जयपुर में वो संस्था अब भी काम कर रही है। राजस्थान के दृष्टांत में यह लोग विकृति देकर धर्म का प्रतिबिंबन करते थे। एक से जुड़ी संस्था एक महिला मेरे संपर्क में आई, जिसने मुझे ईसाई बनने की पेशकश की तो मेरे कान खड़े हो गए। तब मैं बहुत सी स्टेटम स्टेट सरकार को दिया गया था, लेकिन तब स्टेट गवर्नमेंट के स्तर पर उसे बहुत सारे ग्रेविटेशन से नहीं लिया गया था, लेकिन उसी सूचना को सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने ग्रेविटेशन से लिया और उन कार्यों की बहुत सी गतिविधियों को रोकने में अमानत मिली।
इसी तरह आजकल लव जिहाद का काम हो रहा है। विशेष रूप से खाड़ी देशों (गल्फ) से इस काम की फंडिंग होती है। जयपुर और राजस्थान में भी चल रहा है। हमने आज ही नया फॉर्म तैयार किया है। अब भी चल रहे हैं। युवा लड़कों को इस काम के लिए खास ट्रेनिंग और पैसा दिया जा रहा है। जो लड़का मोटरसाइकिल चला रहा है और काम-धाम कुछ नहीं करता। उनके पास गल्फ से पैसा भेजा जाता है, जिसे पेट्रो डॉलर कहा जाता है। सोशल मीडिया पर फेक आईडी बनाकर भी इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
भास्कर : आपने स्कूल-कॉलेज में लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी दी है। क्या मार्शल आर्ट में कोई ऐसी विधा है, जिसमें बिना किसी हथियार के दुश्मन को टक्कर दी जा सकती है?
हुकुमसिंह : जी बिल्कुल, ऐसी टेक्नीक होती हैं। मैं कराटे की गोचू स्टाइल का विद्यार्थी हूं। इस कला में मैं बिना किसी हथियार के किसी के शरीर पर ऐसी कई जगहों पर हमला कर सकता हूं, जिससे बेहोश हो सकता है, लकवा हो सकता है या जान भी जा सकता है। कुछ फिल्मों में इस टेक्निक को भी दिखाया गया है।
भास्कर : आपने भारत के अलावा विदेश में किसी मिशन को अंजाम दिया?
हुकुमसिंह : मैं अफ्रीका और यूरोप के सूडान, बोस्निया, हर्जेगोविनिया जैसी जगहों पर संयुक्त राष्ट्र संघ के मिशन के तहत काम कर रहा हूं।
सिंह अफ्रीका और यूरोप के देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ की सेवाओं के तहत भी कार्य कर रहे हैं।
भास्कर : जासूसों से मिलने वाली प्रविष्टियों को क्या सरकार, राजनेता और आला अधिकारी ग्रेविटेशन से लेते हैं?
हुकुमसिंह : हमारी (प्रथम सूचना) ए, बी और सी ग्रेड में है। ए ग्रेड की सूचना को कभी हल्के में नहीं लिया जाता। मैं एक उदाहरण आपको बाबरी चीजों को मिलाने के बाद जयपुर में दबंगों के बारे में बताता हूं। जब टिबरेवाल आयोग ने उन दंगों के बारे में जांच की थी, तब हमारी इस सूचना को सबसे अहम माना गया था। इसी से इंटेलिजेंस यूनिट की जान बचाई गई थी। हमारे रजिस्टर में वो सूचना दर्ज की गई थी। यह सूचना मैंने अपनी उच्च अधिकारियों को दी थी। यह एक ग्रेडिक स्तर पर ग्रेड सूचना थी।
इसी तरह पश्चिमी राजस्थान में कभी सोना तस्कर रहे गणपत सिंह बाखासर के बेटे की शादी जयपुर में हुई थी। वहां 60 से ज्यादा सोने के तस्कर आने वाले थे। हमें उनकी डिटेल, फोटो, वीडियो सब देख रहे थे। वो बढ़ाए। वो सूचना भी निर्दिष्ट स्तर पर जोधपुर से आई थी। उसे हलके में नहीं लिया गया। सोने के तस्करों के बहुत बड़े जमावड़े का भंडाफोड़ टीम ने किया था। तब कैमरा या रिकॉर्डर नहीं होते थे। न आज की तरह मोबाइल थे, तो यह काम बहुत मुश्किल था।
हमारे सुरक्षा एजेंसियां सक्षम हैं, हर चुनौती के लिए, लेकिन सावधानी भी बहुत जरूरी है।
भास्कर : पंजाब में फिर से रंग दिखा रहे हैं खालिस्तान आंदोलन का कोई असर आप राजस्थान पर भी देखें?
हुकुमसिंह : ठीक असर नहीं हो रहा है। राजस्थान पंजाब राज्य का पड़ोसी प्रदेश है और इस आंदोलन को हवा देने वाले पाकिस्तान से भी हम चिंतित हैं। आज भी हमारी सेना, बीएसएफ और दूसरी एजेंसियां बहुत कोशिश करती हैं, फिर भी पकना नोट, विकराल पदार्थ और धीमी गति की पश्चिमी सीमा पर बहुत दबाव है। तारबंदी के नीचे से मुंबई ठगी का आरोप ही सामने आता है।
कांडला बंदरगाह से तब मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुत कुछ आ रहा था। अब भी इस तरह के रूट के होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
पंजाब में जो कुछ हो रहा है, उसका धमक-आहट यहां पर सुना दे रहा है। हालांकि उम्र बढ़ने के बावजूद हम उन्हें हासिल नहीं कर पाएंगे। साथ ही जब गैर-जिम्मेदार राजनीतिज्ञों की गैर-जिम्मेदाराना विचारधारा की सरकारें बनती हैं तो इस तरह के देश विरोधी आंदोलन बनते ही हैं। आप मेरा इशारा ही रहे हैं।
भास्कर अब आप लक्षण हो गए हैं। इन दिनों क्या कर रहे हैं ?
हुकुमसिंह : मैं सेवा से क्षतिग्रस्त हूं, कर्तव्य से नहीं। आज भी जब लगता है कि देश सेवा के लिए जरूरी है तो काम करता ही हूं। अभी मैं उच्च न्यायालय में वकील के रूप में काम कर रहा हूं।
भास्कर : युवाओं को क्या संदेश देता है गुप्तचर सेवा का कैरियर?
हुकुमसिंह : यह एक शानदार करियर है। बहुत दुख हैं, लेकिन जिनके लिए राष्ट्र प्रेम है, उनके लिए यह सबसे बेहतरीन सेवा है। युवाओं को आगे बढ़ना चाहिए।
वर्ष 2006 में हुकुम सिंह को राज्य स्तर पर सम्मानित किया जाता है। वसुंधरा राजे।
सिंह की लिखी किताबों पर डॉक्टरेट हो गया है
हुकुम सिंह ने छह पुस्तकें भी लिखी हैं। इनमें से एक जमीर, नाथ सम्प्रदाय इतिहास व दर्शन, वृक्कवंश चरितम, अग्निपुष्प, जमीर की मखाना और उनकी दास्तान प्रकाशित हो चुकी हैं। दो पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। इनमें से नाथ सम्प्रदाय से संबंधित पुस्तक पर चार शोधार्थी डॉक्टरेट भी कर चुके हैं। सिंह का परिवार भी नाथ संप्रदाय से ही संबंधित है।