25 मिनट पहले
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लंदन से भास्कर के लिए मोहम्मद अली
ऋषि सुनक के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सरकार अवैध पहचानों को पहचानने के लिए कड़ी नीति लागू कर रही है। लेकिन, इसका प्रभाव वहीं बना हुआ है जो वैध भारतीय संबद्धता पर टिका हुआ है। पिछले साल के दौरान ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने लगभग चार लाख व्यक्तिगत आवेदनों में से लगभग 63 हजार नियोक्ताओं को विभिन्न सरकारी कनेक्शन को नौकरी नहीं देने के आदेश दिए चार। इनमें से 21 हजार भारतीय हैं।
दैनिक भास्कर की ओर से अलग-अलग सरकारी जुड़ाव और प्रभावित भारतीयों से विस्तृत दर्शकों में सामने आया कि रंगभेद और नस्लीय पहचान के कारण भारतीयों को अवैध प्रवासी मान लिया जाता है। उनके दस्तावेज़ रद्द हो जाते हैं।
फिटमेंट में भी मुश्किलें
वैध भारतीयों को बैंक खाते, दुर्घटनाएं सुनिश्चित करने से लेकर यात्रा करने तक मुश्किल हो रहे हैं। दूसरी ओर, भारतवंशी गृहमंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने सनक की अस्पष्टता का समर्थन करते हुए हाल ही में बयान दिया है कि वे अवैध पहचान को रवांडा (अफ्रीकी देश) झुकना चाहते हैं। सरकार के इस डरे हुए लोगों से उत्साहित श्वेत संगठन की मिलीभगत और शरणार्थी लगातार जुड़ रहे हैं।
ब्रिटिश सरकार का मानना है कि भारतीयों के साथ नस्लीय भेदभाव हो रहा है
ब्रिटेन में स्पष्ट करने वाली सरकार की ही एक रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि दक्षिण एशिया के लोग विशेष रूप से भारत से जुड़ाव से भेदभाव कर रहे हैं। एक सरकारी अधिकारी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में माना कि अवैध रूप से ब्रिटेन में रहने वाले लोगों को मार्केट करने में ओपनिंग ज्यादा असर नहीं कर रहे हैं। प्रवासी मामलों से जुड़ी ज्यादातर सरकारी एजेंसियां रंग के आधार पर ही जजमेंट लेती हैं।
दोहरा रवैया: शरण देने के लिए भारतीयों को ना, यूक्रेनियों को हां
कार्यकर्ता कार्यकर्ता सूजन उसका आरोप है कि वैध रूप से शरण लेने वालों का हक खत्म हो गया है। जबकि यूक्रेन से आने वाले पौने तीन लाख लोगों को शरण दी जा चुकी है।