3 घंटे पहलेलेखक: नीरज सिंह
‘500 साल से हमारे महत्वाकांक्षी ने इस धरती पर अपना खून बहाया है। कुर्बानी देने वाले बहुत सारे लोग हैं कि हम अटैचमेंट पर नहीं जा सकते। इस धरती के संबंध में हम हैं। इस दावे से हमें कोई पीछे नहीं हटा सकता। न इंन्द्रा हटा दी गई थी और न ही मोदी या अमित शाह हटा सकते हैं। दुनिया भर के फौजें आ जाएं, हम मरते मर जाएंगे, लेकिन अपना दावा नहीं छोड़ेंगे।’
ये बयान खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख पाल सिंह का है। अमृतपाल और उसके 6 साथियों को पंजाब पुलिस ने जालंधर के मैहतपुर इलाके में लगातार गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी अजनाला थाने पर हमले से जुड़े मामले में हुई है।
अमृतपाल के खिलाफ दर्ज हैं 3 मामले, जिनमें से दो मामले अमृतसर जिले के अजनाला थाने में हैं। अपने एक करीबी की गिरफ्तारी से गुस्साए अमृतपाल ने 23 फरवरी को संबंधों के साथ मिलकर अजनाला थाने पर हमला किया था। इस मामले में उस पर कार्रवाई नहीं होने के कारण पंजाब पुलिस की काफी आलोचना हो रही थी।
भास्कर एक्सप्लेनर में कौन है वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह? उसे भिंडरांवाला पार्ट-2 क्यों कहा जा रहा है?
पंजाब के अमृतसर जिले में जलूपुर खेड़ा में वर्ष 1993 में अमृतपाल सिंह का जन्म हुआ। 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद साल 2012 में अमृतपाल काम के मामले में दुबई चला गया। दुबई लगा वह ट्रांसपोर्ट बिजनेस का काम करने लगा।
पिछले साल फरवरी में दीप सिद्धू की मौत के बाद ‘वारिस पंजाब दे’ को संभालने के लिए अमृतपाल वापस पंजाब लौट आया। 29 सितंबर 2022 को मोगा जिले के रोडे गांव में अमृतपाल को ‘वारिस पंजाब दे’ का मुखिया घोषित किया गया। दरअसल, खालिस्तानी रहे जरनैल सिंह भिंडरांवाला इसी रोड पर गांव रहने वाला था। इस दौरान यहां पर हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे, जो खालिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे।
‘वारिस पंजाब दे’ संगठन को पंजाबी अभिनेता संदीप सिंह ठीक दीप सिद्धू ने सितंबर 2021 में बनाया था। दीप सिद्धू 26 जनवरी 2021 को लालकिले पर हुए गुंडागर्दी के मामले में बड़ा झटका था। इस संगठन का मकसद- युवाओं को सिख पंथ के रास्ते पर लाना और पंजाब को दुनिया बनाना है। इस संगठन का एक मकसद पर विवाद भी है वह है- पंजाब की ‘आजादी’ के लिए लड़ाई।
सोशल मीडिया एक्टिविटी से पता चलता है कि पिछले 5 साल में किपाल अमृत से सिखों से जुड़े मुद्दों पर बात उठ रही है। वह 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का भी हिस्सा बना, खासकर दीपू सिद्ध से जुड़े आंदोलन का।

शंभू सीमाओं पर दीप सिद्धू अपने भाषणों में कहते हैं कि कृषि कानूनों पर कब्जा करने के बावजूद आंदोलन बंद नहीं होना चाहिए, बल्कि पंजाब में एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन की ओर ले जाना चाहिए। अमृतपाल सिंह के विचार भी ऐसे ही हैं, लेकिन उन्होंने दीप सिद्धू से अलग राह पकड़ी है।
यहां एक और रोचक बात है कि अमृतपाल और दीप सिद्धू का प्रचार तौर पर कभी-कभी एक-दूसरे से नहीं मिला और दोनों के बीच सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए ही बातचीत हुई।
सब्सक्राइबर अमृत सिंह का वीडियो नाता से जुड़ा है। उनका वादा है कि दीप सिद्धू अमृतपाल सिंह के करीबी थे। इसीलिए अमृत वारिस पंजाब दे के मुखिया बनने के सबसे योग्य थे। दीप सिद्धू के कुछ सहयोगी जैसे पलविंदर सिंह तलवारा और परिवार के कुछ सदस्य अमृतपाल को प्रमुख बनाए जाने का विरोध करते हैं।
पत्रकार भगत सिंह दोआबी का दावा है कि सिद्धू ने अमृतपाल को सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया था। लक्ष्य के वकील और दीप सिद्धू के भाई मनदीप सिंह सिद्धू एक बातचीत में बताते हैं कि हमें अमृतपाल से पहले कभी नहीं मिले। दीप सिद्धू भी उसे कभी नहीं मिले। वह कुछ समय तक फोन पर दीप के संपर्क में रहा, लेकिन बाद में दीप ने उसे ब्लॉक कर दिया।
हमें नहीं पता कि उसने खुद को मेरे भाई के संगठन का प्रमुख कैसे घोषित कर दिया। वह असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए हमारे नाम का सेवन कर रहा है। उन्होंने किसी तरह मेरे भाई के सोशल मीडिया अकाउंट्स को ऐक्सेस कर लिया और उन पर पोस्ट करना शुरू कर दिया।
मनदीप कहते हैं कि मेरे भाई ने इस संगठन को पंजाब के मुद्दों को उठाने और दावों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बनाया था न कि खालिस्तान का प्रचार करने के लिए। अमृतपाल पंजाब में फैला की बात कर रहा है। वह मेरे भाई और खालिस्तान का नाम लेकर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। मेरा भाई असैनिक नहीं था।

ये दोनों फोटो अमृतपाल सिंह की हैं। इनमें से एक दुबई में रहने के दौरान (बाएं) और दूसरा पंजाब आने के बाद है।
अमृतपाल सिंह पंजाबियों से किस तरह की बात करता है?
जैसा कि हम ऊपर बताते हैं कि दीप सिद्धू की तरह अमृत हीपाल सिंह भी पंजाब में एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का आह्वान करता है। उनका मानना है कि कृषि कानूनों को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। हालांकि दीप सिद्धू की तुलना अमृत मेंपाल के शब्द काफी तीखे होते हैं। कुछ लोग दीप सिद्धू की तुलना में अमृत को अधिक जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में देखते हैं।
अमृतपाल सिंह का कहना है कि कृषि कानून हो, पंजाब में पानी का संकट हो, व्यापक दवाओं का संकट हो, आप और बिहार से लोगों का पंजाब में पलायन हो, राजनीतिक पकड़ की गिरफ्तारी हो, पंजाबी भाषा को कमजोर करना हो, ये सभी सिखों के मानसिक नरसंहार का हिस्सा हैं।
इसे आप उनकी इस कंफर्मेशन से भी समझ सकते हैं। अमृतपाल ने पंजाब के जीरा में शराब बनाने वाली फैक्ट्री के विरोध में हिस्सा लिया था। उसने इस दौरान कहा था कि इस तरह के कारखाने पंजाबियों के प्राकृतिक नरसंहार का हिस्सा हैं, क्योंकि इससे पानी के नुकसान के साथ-साथ नशा भी बढ़ता है।
अमृतपाल का कहना है कि सिख मूल्य को कमजोर करने और पॉप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सिखों को अपने बाल काटने और दाढ़ी काटने के लिए बढ़ावा देना भी साइलेंट नरसंहार की प्रक्रिया का हिस्सा है।
अमृतपाल का कहना है कि नरसंहार में मौत होना जरूरी नहीं है। अगर एक पोता अपने दादा की तरह नहीं दिखता है? अगर एक शेर की तरह शेर की तरह नहीं, बल्कि हिरण की तरह दिखता है, तो क्या यह एक तरह का नरसंहार नहीं है?
अमृतपाल का कहना है कि पंजाब पंजाबियों के लिए है और नौकरियों को सभी स्तरों पर स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है। अमृतपाल के आलोचक कहते हैं कि वह जरनैल सिंह भिंडरांवाला की तरह अपने भाषण से युवाओं को उग्रवाद की ओर ले जा सकते हैं और ऐसे रास्ते पर ले जा सकते हैं जहां युवाओं को गिरफ्तार किया जा सकता है या मार दिया जा सकता है। वह हिंदू विरोध की बात करता है।
इस तरह के झूठ पर अमृतपाल सिंह जवाब देते हैं कि क्या गुरु गोबिंद सिंह ने अपने बेटों की बलि नहीं दी थी? क्या होता है अगर उन्होंने भी सैटेलाइट के बारे में सोचा? तब सिखों का क्या होता है? अमृतपाल कहते हैं, ‘मैं नहीं चाहता कि कोई मरे, लेकिन अगर किसी का बेटा सिख के लिए अपनी जान देता है तो वह गुरु का बेटा बन जाता है।’
कई राजनीतिक दलों ने अमृतपाल पर पंजाब को स्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। वहीं उसके कुछ आलोचकों का कहना है कि वह सिखों और अन्य समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं के बीच विभाजन को बढ़ा रहा है। अपनी सार्वजनिक रैलियों में वह यूपी और बिहार से हिंदू और जम्मू से गुर्जर मुस्लिमों के पलायन की बात भी करता है।
गृह मंत्री अमित शाह को भी धमकी दी है अमृतपाल ने
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी धमकी दे चुके हैं। अमृतपाल ने पिछले महीने पंजाब के मोगा जिले के बुधसिंह वाला गांव में कहा था कि इंद्रपाल ने भी सीखने की कोशिश की थी, क्या हश्र हुआ? अब अमित शाह अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें। अमृतपाल पंजाबी सिंगर दीप सिद्धू की ब्ली में आया था।
दरअसल, अमित शाह ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि पंजाब में स्कीस्टिस संबंधों पर हमारी नजर है। अमृतपाल से शाह के बयानों को लेकर सवाल किया गया था। इस परपाल ने अमृत से कहा कि शाह को कह दो कि पंजाब का बच्चा-बच्चा खालिस्तान की बात करता है। जो करना है कर ले। हम अपना राज मांग रहे हैं, किसी दूसरे का नहीं।
युवाओं को रोजगार दे रहा है
दीप सिद्धू की अचानक मौत और सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने पंजाब के युवाओं के एक बड़े वर्ग को आहत किया है। हालांकि दोनों की पंजाब और सिखों से जुड़े मुद्दों पर एक अलग राय थी। ऐसे में पंजाब के युवाओं के पास एक रोल मॉडल की कमी थी और अमृतपाल सिंह सिख युवाओं के एक वर्ग के लिए उस खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है।
अमृतपाल अपनी भाषण शैली के कारण चर्चा में आया। अपने भाषण में सारांश के समर्थन में खोलकर बताता है। इतना ही नहीं, वह पंजाब के युवाओं को ड्रग्स के जाल से खुले में लेयर के साथ उन युवाओं को अपने साथ जोड़ रहा है। वह पंजाब पंजाबियों के लिए की अपील करता है और लाइटिंग में हकीकत की मांग का मामी भी उठा रहा है, क्योंकि राज्य में बेरोजगारी एक प्रमुख संख्या है।
उसके युवा ग्रुप में एक आम बात सुनने को मिलती है कि कम से कम कोई तो कुछ कर रहा है। यही कारण है कि कुछ लोग अमृतपाल की तुलना जरनैल सिंह भिंडरांवाला से कर रहे हैं। 1970 के दशक में जरनैल सिंह भिंडरांवाला भी कुछ इसी तरह का काम करता था। वह पूरे पंजाब में यौन शोषण, नशीली दवाओं और उपभोक्तावाद के खिलाफ प्रचार करते हुए यात्रा करता था। उन्हें भी पहले ऐसे ही प्रमोट किया गया था।
खालिस्तान समर्थक होने की वजह से अमृतपाल सिंह को भिंडरांवाला पार्ट-2 भी कहा जा रहा है। अमृतपाल, भिंड़रांवाला की तरह ही नीली पगड़ी पहनती है। पिछले साल 29 सितंबर को मोगा जिले के रोडे गांव में ‘वारिस पंजाब दे’ की पहली वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम किया गया था। दरअसल, यह भिंडरांवाला ही गांवों का माता-पिता है।
अमृतपाल कहते हैं, भिंदरांवाला मेरी प्रेरणा हैं। मैं उनके रास्ते पर चलूंगा। मैं उनका जैसा बनना चाहता हूं क्योंकि ऐसा हर एक सिख चाहता है। मैं पंथ की आजादी चाहता हूं। मेरे खून का हरा कतरा इसके लिए समर्पित है। बीते समय में हमारी जंग इसी गांव से शुरू हुई थी। भविष्य की जंग भी इसी गांव से शुरू होगी।
हम सब अब भी गुलाम हैं। हमें अपनी आजादी के लिए भरना होगा। हमारा पानी लूटा जा रहा है। हमारे गुरु का अपमान किया जा रहा है। पंथ विशाल जान देने के लिए पंजाब के हरेक युवाओं को तैयार रहना चाहिए।’

अमृतपाल, भिंड़रांवाला की तरह ही नीली पगड़ी पहनती है।
कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाला, जिसकी प्रेरणा है अमृतपाल?
आनंद साहिब रिजोल्यूशन का ही एक कट्टर समर्थक जरनैल सिंह भिंडरांवाला था। एक रागी के रूप में यात्रा शुरू करने वाले भिंडरांवाला ने आगे चलकर हथियार उठाने के लिए। जाने-माने सिख पत्रकार खुशवंत सिंह का कहना था कि भिंडरांवाला हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने को उकसाता था। उनका कहना था कि इससे सिखों की समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाएगा।
1982 में भिंडरांवाला ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिलाया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। इस दौरान जिसने भी भिंडरावाला का विरोध किया, उसकी हिट सूची में आ गई।
इसी की वजह से खालिस्तानी कार्रवाई ने पंजाब केसरी के संस्थापक और जुड़ी लाला जगत नारायण की हत्या कर दी। गिरफ्तारी अखबार बेचने वाले हॉकर तक नहीं छोड़ा। कहा जाता है कि प्रधान मंत्री इंस्पिरेशन गांधी के बेटे संजय गांधी ने उस समय अकाली दल के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए भिंडरांवाला का समर्थन किया था।
इसके बाद सुरक्षाबलों से बचने के लिए भिंडरांवाला स्वर्ण मंदिर में जा घुसा। दो साल तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसी दौरान भिंड़रांवाला स्वर्ण मंदिर परिसर में बने अकाल तख्ता पर काबिज हो गए।

अपने जाम के साथ जरनैल सिंह भिंडरांवाला।
पहले अन्य विकल्पों पर चर्चा की गई। प्रधानाध्यापक गांधी ने भिंडरांवाला कोच के लिए एक गुप्त ‘स्नैच एंड ग्रैब’ ऑपरेशन को लगभग मंजूरी दे दी थी। इस ऑपरेशन के लिए 200 कमांडो को प्रशिक्षित भी किया गया था।
जब इंस्पिरेशन गांधी ने पूछा कि इस दौरान आम लोगों को कितना नुकसान हो सकता है, इस पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद ऑपरेशन सनडाउन को रोक दिया गया। इसके बाद सरकार ने सेना को फाइल करने का फैसला लिया।
यह कहा जाता है कि 5 जून को कांग्रेस (आई) के सभी सांसद और स्पीशीज़ को जान से मारने की धमकी और अल्पसंख्यकों में हिंदू की सामूहिक हत्याएं शुरू करने की योजना का खुलासा होने के बाद यह फैसला किया गया।
5 जून 1984 को रात 10:30 बजे ऑपरेशन का पहला चरण शुरू किया गया था। स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर की इमारतों पर आगे से हमला शुरू किया गया। इस दौरान खालिस्तानी चोट ने भी सेना पर खूब निशानेबाजी की।
7 जून तक भारतीय सेना ने परिसर पर कंट्रोल कर लिया। ऑपरेशन ब्लूस्टार 10 जून 1984 को दोपहर में समाप्त हुआ। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हुए। सरकार के अनुसार, हमलों में 493 आतंकवादी और नागरिक मारे गए। हालांकि कई सिख संगठनों का दावा है कि ऑपरेशन के दौरान कम से कम 3,000 लोग मारे गए।
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