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- चुनावी बिगुल के बीच वोट काटने वाली पार्टियों का ढोल अभी से ही बजने लगा है.
एक घंटा पहले
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चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई है। विशेषकर, मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और नोएडा में। ये भी राजस्थान की सक्रियता कुछ अधिक ही है। आप और ओवेसी ने अभी से ताल ठोक दी है। ओवेसी ट्वेंटीस-तीस सन्नाटे पर और आप पार्टी राजस्थान की सभी शर्तों पर चुनावों में महिलाओं की योजना बना चुके हैं।
बता दें, ये दोनों ही पार्टी राजनीति में वोट कटवा का काम करती हैं। इन्हें खुद को ज़्यादा नहीं मिलता। दूसरे बड़े भ्रम को ये अच्छा- ख़ासा नुक़सान और फ़ायदा करवाती हैं। अगर आपको याद हो तो गुजरात में यही हुआ था। ज़ोर शोर से आप गुजरात के चुनाव मैदान में उतरे थे। ब्रिहल्ला मचाया। खूब प्रचार पाया। आप पार्टी को हद तक ज्यादा कुछ नहीं मिला लेकिन कांग्रेस की खाट हो गई और बीजेपी की पौड़ी बारह। इतिहास में गुजरात की किसी पार्टी को जितनी सीटें नहीं मिलीं, उतनी ही बीजेपी की जीत हुई।

ये तस्वीर मंगलवार की है। भोपाल के भेल दशहरा मैदान पर आम आदमी पार्टी ने मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया था। दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और पंजाब के भगवंत मान ने सभा द्वारा कहा था-मध्यप्रदेश में सरकारें आपत्ति और जताती हैं। यहां विधायक की साझेदारी-बिकरी पर भी मुलाकात होती है।
ये गुजरात वाला कॉम्बिनेशन शायद भारतीय राजनीति में लावारिस है। आप पार्टी अब लगता है कि हर प्रदेश के चुनाव में धमकेगी और कांग्रेस की बची-खुची इलाके को भी खा जाने वाले हैं। दरअसल, आप पार्टी के आ जाने से चुनाव पेचीदा नहीं होता है, बनाया जाता है। बताया गया है।
हवा इस तरह बनाई जाती है जैसे सरकार अब आप पार्टी की ही बनने वाली है। नजीजे जब आते हैं तो पता चल जाता है कि बहुत अधिक परिदृश्य पर आप के प्रत्याशियों की पार्टी ज़मानत तक ज़बत हो गई है। तो फिर ये सवाल उठता है कि आप के होने से किसी का भारी नुक्सान या किसी का भारी फायदा कैसे होता है?

ये तस्वीर शनिवार की है। राजस्थान के अशोक गहलोत के गृह जिला जोधपुर में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पहुंचे थे। उन्होंने कहा था- राजस्थान में मुस्लिमों के हालात पर सर्वे करवा रहे हैं। मुस्लिम को धर्मनिरपेक्षता का कुल योग बना दिया गया है। जब चुनाव आते हैं तो कहते हैं सेक्युलरिज्म को जिंदा रखो।
वास्तव में हजार से कम वोटों से जिन रेंज पर हार या जीत होती है, उनके परिणाम प्रभावित करने में आप पार्टी को प्रभावित करते हैं। उन कम अंतर की जीत या हारने वाले डर का फ़ैसला आपकी पार्टी या ओवेसी की उपस्थिति के कारण बदल जाता है। प्रमाणन की बात यह है कि इसका नुक़सान कांग्रेस के हिस्से में आता है। बीजेपी को इससे कोई नुक़सान नहीं होता।
यही कारण है कि इन छोटे मतदाताओं की उपस्थिति भाजपा के लिए हमेशा फायदेमंद साबित होती है। राजनीति में अब यही खेल चल रहा है। कांग्रेस के पास चुनावी फ़ण्डे कम ही रह गए हैं। राजनीति के मैदान में ऐसे खिलाड़ी ही नहीं हैं जो अपनी उपस्थिति से भाजपा को गच्चा दे सकते हैं। यह सब वोट बैंक की तासीर पर हमेशा के लिए कर देता है। कांग्रेस के वोट बैंक की तासीर आप और ओवेसी के वोट बैंक से काफ़ी मिलती है। इसलिए ये दोनों कांग्रेस के ही वोट कटती हैं। भाजपा के नहीं।