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Monday, March 13, 2023
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व्रत का धार्मिक रूप से कोई वैज्ञानिक महत्व भी नहीं है, स्वास्थ्य को ठीक रखने में इसकी प्रमुख भूमिका है

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शीतला अष्टमी 2023: होली के बाद सातवें और आठवें दिन शीतला माता की पूजा की परंपरा है। इसी वजह से ताज़ा शीतला सप्तमी या शीतलाष्टमी कहा जाता है। शीतला माता का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। चैत्र मास में शीतला माता के लिए शीतला सप्तमी का व्रत 14 मार्च, 2023 मंगलवार के दिन और अष्टमी 15 मार्च, 2023 बुधवार के दिन आ रहा है, इस दिन व्रत- उपवास करने का विशेष महत्व है। इस व्रत में ठंडा खाना खाने की परंपरा है। जो लोग ये व्रत करते हैं, वे एक दिन पहले बने खाने के ही फायदे हैं।

शुभ मुहूर्त
बसोड़ा या शीतला अष्टमी
15 मार्च 2023 दिन दिन दिन रविवार
अष्टमी तिथि शुरू: 14 मार्च 2023 को रात 08:22 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 15 मार्च 2023 शाम 06:45 बजे
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त: सुबह 06:31 से शाम 06:29 तक

खाने की परंपरा
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी ठंडे भोजन करते हैं। इस व्रत पर एक दिन पहले भोजन करने की परंपरा है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। माना जाता है कि ऋतुओं को बदलने पर खान-पान में बदलाव करना चाहिए। इसलिए ठंडे भोजन की परंपरा बनाई जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडक से भोजन से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान व मध्य प्रदेश के कुछ समुदायों के लोग इस त्योहार को बासौड़ा कहते हैं। जो कि बेसी भोजन के नाम से लिया गया है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग सप्तमी की रात को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही स्वयं ग्रहण करते हैं। कहीं पर हलवा का पूरा भोग तैयार किया जाता है तो कुछ जगहों पर गुलगुले बनाए जाते हैं। कुछ जगहों पर गन्ने के रस की बनी बनी खीर का भोग भी शीतला माता को दिया जाता है। इस खीर को भी सप्तमी की रात को ही बनाया जाता है।

प्रतिबंधों से बचने के लिए व्रत
ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा जैसी संस्थाओं को नियंत्रित करती हैं और लोग उन नीतियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।

सुख-समृद्धि के लिए शीतला अष्टमी व्रत रखें
हिन्दू धर्म के अनुसार सप्तमी और अष्टमी तिथि पर महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की सलामती के लिए और घर में सुख, शांति के लिए बासरोडा माता शीतला को पूजती है। माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी चढ़ावे के एक दिन पहले ही रात में बना लेते हैं। अगले दिन ये बासी प्रसाद देवी को चढ़ाया जाता है। पूजा के बाद महिलाएं अपने परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं।

शीतलाष्टमी की व्रत कथा
एक बार की बात है, प्रताप नगर में गाँववासी शीतला माता की पूजा- श्राण कर रहे थे और पूजा के दौरान गाँव वालों ने गर्म नैवेद्य माता शीतला को चढ़ाया। जिससे देवी का मुंह जल गया। इससे गांव में आग लग गई। लेकिन एक बुढ़िया का घर बच गया। गांव वालों ने बुढ़िया से घर न रहस्य की वजह पूछने की वजह बताई तो बताया कि उसने माता शीतला को ठंडा प्रसाद दिया था और कहा कि मैंने रात को ही प्रसाद बनाकर बसी प्रसाद माता को भोजन दिया। जिससे देवी ने मेरे घर को गुप्त से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने अगले पक्ष में सप्तमी/अष्टमी के दिन उन्हें बासी प्रसाद खिलाकर माता शीतला का बसदौरा पूजन किया।

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