नई दिल्ली15 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने पैरवी कर अधिकार कानून में महिलाओं के साथ संपत्ति के बंटवारे में भेदभाव का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि शरीयत कानून में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार नहीं मिलते, इसे दूर करने की जरूरत है। देश के संविधान में महिलाओं को समानता का अधिकार दिया गया है। इसके बाद भी मुस्लिम महिलाएं भेदभाव का शिकार हो रही हैं।
यह दावा बुशरा अली नाम की महिला ने किया है। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 भाई-बहनों को नोटिस जारी किया है, जिनमें चार बहनें शामिल हैं। मामले की सुनवाई जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय करोल की याचिकाएं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केरल हाई कोर्ट ने 6 जनवरी को इस मामले में श्रेय कानून के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसे बुशरा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
बुशरा ने बताया कि परिवार में संपत्ति के बंटवारे से उनके सदस्यों की तुलना में संबंध जुड़ गए थे। इसी आधार पर उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ लॉ सेक्शन 2 को चुनौती दी है। बुशरा का कहना है कि यह संविधान के एकाउंट्स-15 का उल्लंघन है, जो जाति, धर्म या जेंडर के आधार पर लोगों से भेदभाव करता है। बुशरा ने कहा कि यह संविधान के लेखा-जोखा-13(1) का भी उल्लंघन करता है।
संविधान के लेखा-जोखा-13 में प्रावधान है कि भारत में संविधान से पहले जो भी कानून थे, वह संविधान के दायरे में होंगे और अगर वह मौलिक अधिकार का हनन करते हैं तो वह कानून बनाएंगे।
मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या कहता है
एडवोकेट सलीम अहमद खान के मुताबिक मुस्लिम में शरीयत एक्ट 1937 के तहत संपत्ति का स्थूलीकरण किया जाता है। इसमें किसी व्यक्ति की मौत होने पर उसकी संपत्ति में उसका बेटा, बेटी, पत्नी और माता-पिता का हिस्सा दिया जाता है। कानून के तहत बेटी को बेटे की तुलना में पहले संपत्ति देने का प्रावधान है। पति की मौत के बाद पत्नी की संपत्ति का 6वां हिस्सा दिया जाता है। वहीं, माता-पिता के लिए भी कपड़ों को बिछाया जाता है।