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Friday, March 17, 2023
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सामने आ सकते हैं कई रहस्य: ढांचे में जीवन की खोज करने वाले वैज्ञानिक जेसी बोस की तिजोरी ग्राहिडीह में 86 साल से बंद

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पारसनाथ में भौतिकी, जीवविज्ञानी और वनस्पति विज्ञान पर शोध कर रहे थे, 1937 में उनकी मृत्यु हो गई थी

महान वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस के तिजोरी के राज कब खुले। यह प्रश्न लंबे समय से अनुत्तरित है। पहले बिहार, फिर झारखंड में सरकारें बदलती-बदलती स्थिति। किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब झारखंड में मांग उठ रही है कि 86 साल के राज को अब सरकार तो सामने दिख रही है। पेड़-पौधों में जीवन की खोज करने वाले सर जेसी बोस ने गिरिडीह में जीवन के अंतिम समय तक गुजारे थे।

23 नवंबर 1937 को वे यहां अंतिम सांस ले रहे थे। वे जिस घर में रहते थे, अब डिस्ट्रिक्ट साइंस सेंटर खराब हो गया है। इस भवन के एक कमरे में एक तिजोरी है, जो बंद है। यह खुला तो विज्ञान के कई पहलू सामने आ सकते हैं। ठोस के अनुसार तिजोरी की उपस्थिति ऐसी है कि इसे वैज्ञानिक ही खोल सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को तिजोरी खुलवाने के लिए आमंत्रित किया गया था, पर वे आ नहीं आ सके।

संयंत्र भी सांस लेते हैं…ग्राहिडीह में रमणीय बोस ने बनाया था यंत्र

क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म इंजन डिटेक्टर।

क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म इंजन डिटेक्टर।

दैनिक भास्कर ने ग्राहिडीह विज्ञान भवन की जानकारी ली। भवन में क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म इंजन डिटेक्टर के मॉडल रखे गए हैं। दोनों यंत्रों का आविष्कार सर जेसी बोस ने किया था। ये वैसे यंत्र हैं, जिससे पता चला था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। वे भी इंसान की तरह सांस लेते हैं और दर्द महसूस कर सकते हैं। उन्होंने गिरिडीह के पारसनाथ पर्वत की तराई में लंबे समय तक भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व विज्ञान में कई शोध किए थे। वे जिस मकान में रहते थे, उसकी जानकारी कम लोगों को थी।

सर जगदीश चंद्र बोस

सर जगदीश चंद्र बोस

सरकार की संज्ञा में आई तो भवन को जगदीश चंद्र बोस स्मृति विज्ञान भवन का नाम दिया गया। बिहार के लिपिक राज्यपाल अर किदवई ने 28 फरवरी 1997 को भवन का उद्घाटन किया था। इस भवन में जेसी बोस की बाल्यावस्था, युवावस्था, माता-पिता, परिवार के सदस्य, दोस्त और अनुसंधान के दौरान उनकी गतिविधियों से संबंधित तस्वीरें मौजूद हैं। सर जेसी बोस मेमोरियल सोसाइटी ने कोलकाता स्थित बोस संस्थान को पत्र भेजकर इस भवन को बढ़ाने की मांग की है।

यही तिजोरी है, जिसे आज तक नहीं खोला गया

वैज्ञानिक साइंस सेंटर के अनुसार, गुप्त रखने की कोशिश नहीं की गई। बिना सरकारी पहल के इसे खोला नहीं जा सकता है। इसलिए झारखंड और केंद्र सरकार को इसका खुलवाना चाहिए। अनुमान है कि ग्राहिडीह में बंद तिजोरी में किसी महत्वपूर्ण चक्कर से जुड़े हुए हैं या कुछ ऐसा हो, जो सामने आने पर दुनिया चमत्कारित हो जाए।

तिजोरी में महत्वपूर्ण डाक हो सकते हैं, इससे विज्ञान के छात्रों को खुशी मिलती है

सर जेसी बोस भारत के ऐसे महान वैज्ञानिक थे, शनिवार दोस्ती से दोस्ती थी। विज्ञान को उन्होंने काफी कुछ दिया। छोटी छवि करने का तरीका बताया गया है। हेनरिक हर्ट्ज के रिसीवर को उन्नत रूप दिया गया। संचार माध्यमों की कार्य प्रणाली में उनकी तैनाती नहीं की जा सकती। कुछों में जीवन की खोज उन्हीं का डेन है। आकार-प्रकार की स्क्रीन पर दिखाने वाले उपकरण का आविष्कार किया गया था। 1928 में क्रेस्कोग्राफ जैसे उपकरणों का आविष्कार किया गया, जो आकार बदलने वाले यंत्र हैं।

रेडियो और माइक्रोमीटर ने काम किया। सर बोस भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व का गहन ज्ञान रखते थे। गिरिडीह में उनकी तिजोरी बंद पड़ी है। यह विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 1937 में जिस समय उनकी मृत्यु हुई, वे ग्राहिडीह में वनस्पति विज्ञान पर कार्य कर रहे थे। इसलिए अनुमान है कि तिजोरी में निश्चित रूप से विज्ञान से जुड़े महत्वपूर्ण पोस्टमेन्ट होंगे। कई पत्र खोज भी सकते हैं, जो देश, विज्ञान और सैर करने वाले छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

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