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- 240 साल पहले बना गुब्बारा, फ्रांस की क्रांति से लेकर अमेरिकी गृहयुद्ध तक में हुआ इस्तेमाल
नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: संजीव कुमार
फरवरी की शुरुआत में चीनी दृष्टि से मिसाइल की चपेट में आने के बाद अमेरिका बौखलाया हुआ है। उसकी खुफिया रिपोर्ट ने यहां तक दावा किया है कि चीन भारत समेत कई देशों की जासूसी कर चुका है।
हालांकि यह भी सच है कि चाहे जौसी हो या फिर दूसरे देशों पर प्रतिबंध लगाने की बात हो अमेरिका ने ही सबसे ज्यादा गुब्बारे को अपवाद हथियार का इस्तेमाल किया है।
अमेरिका ने एक तरफ़ गृहयुद्ध के दौरान आज़ादी हासिल करने के लिए गुब्बरों का इस्तेमाल किया तो वहीं, दूसरे विश्व युद्ध और शीत युद्ध में जासूसी के लिए गुब्बरों को हथियार बनाया। लेकिन अब अमेरिका में वीडियो, वीडियो, खेल सहित सभी तरह के जलसों में गुब्बरों का खूब इस्तेमाल हो रहा है। इसलिए अमेरिका के कुछ प्रांतों ने पर्यावरण पर बैलून के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए उन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
साल 2018 में जब अमेरिका ने क्यूबा के लिए रैकेट सहित कई चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया तो वहां के लोगों ने चश्मा का विकल्प कंडोम में ढूंढ लिया। तब यहां के लोगों ने बर्थ पार्टी, हेयर बैंड समेत कई कामों में बैलून या रबर के रिप्लेसमेंट कंडोम में तलाशी ली।
दृश्य का उपयोग करने में तस्कार भी पीछे नहीं हैं। भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर तस्करों ने नशीले पदार्थों की आपूर्ति के लिए गुब्बरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। फरवरी में हेरोइन के पैकेट से बी ज़ब्त किए गए इस बात का खुलासा हुआ।
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आइए सबसे पहले दृष्टि के कुछ प्रकारों को ग्राफिक के माध्यम से समझें-

भारत और अमेरिका में घुसकर जिस नज़र से जासूसी की जा रही है, वह मामूली गुब्बारा नहीं है। उसका इतिहास दूसरे विश्वयुद्ध से अनुप्रास है।
फ्रांस ने की शुरुआत, अमेरिका ने उठाया फायदा
जासूसी और युद्ध में गुब्बरों ने पहली बार 1794 में फ्रांसीसी क्रांति का इस्तेमाल किया। फ्रेंच एयरोस्टेटिक कॉर्प्स ने ‘एंटरप्रीटेंट’ (उद्यमी) की झलक का इस्तेमाल किया था।

फ्रांसीसी क्रांति के दरैरान बैलून को गणतंत्र के प्रतीक के तौर पर देखा गया था।
बाद में अमेरिकी गृहयुद्ध में कई दृष्टिकोणों का प्रयोग किया गया। तकनीक में सुधार आया तो पहले विश्व युद्ध के दौरान तस्वीरों को गुब्बरों से जोड़ा गया ताकि वास्तविक समय में कब्जा किया जा सके। दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने बैलून का भरपूर उपयोग किया। जापान सहित दुश्मन देशों के सैन्य जुड़ाव, आंदोलन जानने के लिए अमेरिका ने हजारों की संख्या में गुब्बरों का इस्तेमाल किया। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने ‘प्रोजेक्ट मोबी डिक’ और ‘प्रोजेक्ट जेनेटिक्स’ को दुबक लिया। इन प्रोजेक्ट के तहत सोवियत संघ के ऊपर से अमेरिका में हजारों की संख्या में बैलून फहराए कैमरे लगे थे।
स्पाईसैट से अधिक स्मार्ट जासूसी देखें, चकमा दें
अमेरिकी एयर कमांड और स्टाफ कॉलेज की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये जासूसी आंखें कई बार उपग्रहों से भी बहुत बेहतर खुफिया साबित होती हैं। ये गोपनीय खुफिया जानकारी आसानी से निकाल सकते हैं, जो उपग्रह के लिए मुश्किल काम है। निगरानी के लिए उपग्रह अनिष्टकारी सिद्ध होता है, क्योंकि इसके लिए अंतरिक्ष प्रक्षेपकों की आवश्यकता होती है। हीलियम गैस बांड होने की वजह से जासूसी आंखें खुलती हैं और इनमें से एडवांस कैमरा सेना की फिर से शुरुआत होती है और उसका मूवमेंट भी पता लगाने के साथ ही जागरण को चकमा देते हैं। ये उपग्रह की तुलना में स्पष्ट फोटो दिखाते हैं, क्योंकि उपग्रह 90 मिनट में पृथ्वी का चक्कर फैलाते हैं और इस गति की वजह से उनके कैमरे से फोटो धुंधला हो जाता है।
जासूसी के अलावा अब गुब्बारों का कई तरह से इस्तेमाल होने लगा है। इसके साथ ही फैशनेबल तरह-तरह के दर्पण मिलते हैं। जानिए इन ग्राफिक्स में-


240 साल पहले इंसान ने आकाश में उड़ने का पहला अनुभव ‘हॉट एयर बैलून’ दिया था
आज से करीब 240 साल पहले इंसान आकाश में धरती पर लौटा, पहला अनुभव हॉट एयर बैलून के जरिए हुआ। फ्रांस के जोसेफ-मिशेल भाइयों ने 4 जून 1783 को दुनिया का पहला हॉट एयर बैलून बनाया, जिसने करीब 10 मिनट में हवा में उड़ान भरी। इसके लगभग ग्यारह महीने बाद, यानी 21 नवंबर 1783 को उनके हॉट एयर बैलून ने पेरिस में डू ह्यूमन-जीन फ्रेंकोइस और फ्रेंकोइस लॉरेंट को लेकर पहली उड़ान भरी। यह क्लामा ब्रदर्स राइट के हवाई जहाज की पहली उड़ान भरने से लगभग 120 साल पहले हुआ था।
आजकल तुर्की में मौजूद कप्पासोदिया ‘हॉट एयर बैलून राइड’ करने वालों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां के सुंदर और शीर्ष स्थानों के बीच भव्य घाटियां गुब्बर से फ्लाइट भरने वालों के लिए रोमांच पैदा करते हैं।
आगे बढ़ने से पहले यह भी समझ लें कि आजकल कौन-से ऐसे मैटेरियल हैं जो नजर में आ रहे हैं-

अब बैलून केवल सजावट और जासूसी करने के लिए इस्तेमाल नहीं हो रहा है, बल्कि इसके बारे में मोटापा कम करने और दिल को दुरुस्त रखने में भी मदद ली जा रही है।
पेट में डालिए बैलून, 20 किलो तक कम हो जाएगा वजन
एक खास तरह के बैलून की मदद से एक साल में आसानी से 15 से 20 किलो तक का वजन घट सकता है। इकट्ठी से यह बैलून पेट में एक खास जगह भूख को नियंत्रित करता है। इससे व्यक्ति की खुराक कम हो जाती है और वजन घटने लगता है।
एसजीपीजीआई के नोएडा कार्यालय के प्रोफेसर प्रवीर राय ने एक वर्कशॉप में कहा कि परेशान बैलून मोटापा कम करने का आसान तरीका बन गया है। इसमें और माइक्रोस्कोप के जरिए मरीज के पेट में एक सिलिकॉन बैल डाला जाता है जिसकी क्षमता 300 से 800 एमएल होती है।
शीशे को पेट में डालने के बाद उसमें नीला रंग शामिल किया जाता है ताकि पेट के अंदर अगर चश्मे से जुड़ाव हो तो उसकी पहचान हो सके। यह बैलून एक साल तक किसी के पेट में रह सकता है।
हार्ट को मजबूत करने में बैलून थेरेपी अटैक, हमले पर भी इस्तेमाल किया गया
दिल को मजबूत रखने के लिए बैलून थेरेपी का भी इस्तेमाल होने लगा है। जब नसों में ब्लड फ्लो ठीक नहीं होता है तो कई लोग हार्ट को काम पर रखते हैं। इससे सीने में दर्द या एनजाइना अटैक आ सकता है। और अगर विज्ञापन सामग्री पूरी तरह से ब्लॉक हो जाए तो हार्ट अटैक होता है। ऐसे में बैलून रेडियो विद वांछित वांछनीय प्लास्टिकी (कोरोनरी एंजियोप्लास्टी) एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे बंद कलाकारियां खोली जाती हैं। विशिष्ट पृष्ठभूमि प्लास्टी में एक अत्यंत छोटा दृष्टिकोण दृष्टिकोण का उपयोग किया जाता है। यह डिवाइस धमनी के अंदर फूलती है और उसे चक्कर लगाने में मदद करती है।
किसी भी सिलेब्रेशन में दृष्टा की सजावट आम बात हो गई है। पर आपको शायद ही पता चलेगा कि करीब 200 साल पहले माइकल फैराडे ने 1824 में रबर के पर्दे का खुलासा किया था। ये मोटे रबर के टुकड़े से जैसे बनते हैं। रबर का एक पेड़ करीब 40 साल तक बना रहता है।
कभी-कभी एक खेल का नाम गुब्बारा होता था
मैकमिलन डिक्शनरी के अनुसार, बैलून जैसा शब्द शैतानी इतालवी शब्द ‘पैलोन’ से आया है जिसका अर्थ ‘बिग बॉल’ है। 1570 के दशक में, गुब्बारा एक लोकप्रिय खेल हुआ करता था जिसे एक बड़ी फूली हुई चमड़े की गेंद का उपयोग करके बजाया जाता था जिसे किक करके आगे और पीछे घुमाते थे। 1590 के दशक तक प्रत्यक्ष शब्दों का प्रयोग गेंद के लिए किया जा रहा था।
प्लास्टिक दस्तावेजों में एलपीजी भर कर जमाखोरी कर रहे हैं
पाकिस्तान में आर्थिक बदहाली के बाद से दिन-ब-दिन दी जा रही है तो रोज़मर्रा की चीजों की किल्लत भी हो रही है। इस साल जनवरी में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें देखा गया कि रसोई में इस्तेमाल होने वाली रसोई गैस को लोग सिलेंडर के बजाय प्लास्टिक के पर्दे में भर कर रख रहे हैं। खबरों के मुताबिक लोग ऐसा इसलिए कर रहे थे ताकि ज्यादा से ज्यादा गैस जमा करके रखा जा सके।

पाकिस्तान में गैस की आपूर्ति बहुत कम होने के बाद खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में इस तरह की स्थिति सामने आई थी।
14 करोड़ की हेरोइन तस्करों के लिए दो गुब्बरों का इस्तेमाल किया गया
पाकिस्तान के तस्करों ने भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में हेरोइन के तस्करों के लिए ड्रोन की बजाय गुब्बरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। बीती 16 फरवरी को बीएसएफ ने अमृतसर में किसानों की मदद से 14 करोड़ रुपए की कीमत के दो पैकेट हेरोइन ज़ब्त की।

एक-एक किलो के ये पैकेट के जरिए भारत पहुंचा था।
सड़क पर पहचान-बेचते राजस्थानी लड़की बन गई मॉडल
एक साल पहले केरल की घूमने पर रैंगल्स-घूमकर सफारी बेचने वाली लड़की किस्बू अब अपनी खूबसूरत अदाकारी के लिए जानी जा रही हैं। केरल में अंडालूर कावु फेस्टिवल के दौरान संभावनाओं के दौरान अर्जुन कृष्णन की नजर चश्मा और रोशनी के बीच खड़िया किस्बू पर पड़ी तो उन्होंने अपनी एक तस्वीर खींच ली। इसके बाद उन्होंने इस फोटो को इंस्टाग्राम पर शेयर किया तो वह फोटो वायरल हो गई।

राजस्थानी परिवार से ताल्लुक रखने वाली किस्बू को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसकी किस्मत ऐसे पलटने वाली है।
अर्जुन के बाद उनके दोस्त श्रेयस ने भी किस्बू की एक तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर शेयर की। वह भी कुछ ही देर में वायरल हो गया। इसके बाद किस्बू के परिवार से उनके मेकओवर फोटोशूट के लिए संपर्क किया गया। फिर स्टाइलिस्ट रेम्या की मदद से किब्बू का मेकओवर कर दिया गया।

आज किस्बू और अभिनय में नाम कमा रहे हैं।
अमेरिका ने क्यूबा के लिए बैलून बैन किया, लोगों ने कंडोम को बनाया विकल्प लिया
5 साल पहले 2018 में अमेरिका ने क्यूबा पर बैलून समेत तमाम जरूरी चीजों के लिए बैन लगा दिया था। उसके बाद क्यूबाई लोग कंडोम का इस्तेमाल बर्थ पार्टी, फेस्टिवल सहित कई संभावनाओं में परदे की जगह करने लगे। देश में सभी कमियों को देखते हुए यहां के लोगों ने चीजों से ही बाकी के काम को पूरा करना बेहतर समझा।
अमेरिका में कई प्रांतों ने बैलून पर प्रतिबंध लगा दिया, अगले साल पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की तैयारी
अमेरिका के वर्जिनिया, मैरीलैंड और हवाई प्रांतों में हर तरह की सामग्री से बैलून पर प्रतिबंध लगने के बाद अब कैलिफ़ोर्निया ने भी पूरी तरह से बैलून पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद न्यूयॉर्क और फ्लोरिडा में भी ऐसा ही कदम उठाने की तैयारी चल रही है।
सूक्ष्म ग्राफिक पर अध्ययन करने वाले स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ऑशियनोग्राफी के शोधकर्ता कारा विगिनी कहते हैं, बैलून संभावना के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। जैसे- पानी में प्रमाण वाले बैलून को समुद्री जीव खा जाते हैं। अगर समुद्री चिड़िया खा ले तो उनके मरने का खतरा 32 गुना बढ़ जाता है। जंगली जानवरों के पेट में भी घुसने का खतरा है।

अमेरिका में आग से बचने वाले स्थानीय कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि फॉयल बैलून बिजली की लाइन में फंस रहे हैं और शहर में ब्लैक आउट के साथ आग लगने का खतरा भी बढ़ रहा है। मानकों का कहना है कि कई बार बैलून के कारण आग लगने की घटना को बढ़ावा मिलता है। अगर ऐसा घनास्त्रता होता है तो आग बड़े स्तर पर फैल जाती है।
पानी के प्रामाणिक राहगीरों को फेंक दिया जाता है तो उन्हें सजा दी जाती है
होली तो चली गई है, लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अगर किसी राहगीर पर बिना किसी मैसेज के मैसेज भेजा जाता है, तो उन पर कार्रवाई की जा सकती है। दिल्ली ककड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील दिलीप कुमार का कहना है कि अगर किसी की सहमति के बिना पानी से सराबोर या कोई ठोस या तरल पदार्थ किसी दूसरे पर फेंकता है तो आईपीसी की धारा 352 के तहत भी प्रभावित का मामला दर्ज किया जा हो सकता है, जिसमें 3 महीने की सजा का प्रावधान और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार, किसी को चोट पहुंचाने, जबरदस्ती करने से जुड़े मामले में मामला दर्ज हो सकता है। इसमें एक महीने तक जेल या दो सौ रुपये तक का जुर्माना संभव है। महिला भारतीय संहिता की धारा 509 के तहत छेड़खानी की शिकायत कर सकती हैं। इस धारा में क्लेम पाए जाने पर एक साल का कारावास या जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
अडानी की रिपोर्ट देने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी का भी एक भ्रांति से संबंध है
अडानी समूह पर उंगली उठाने वाली हिंडनबर्ग कंपनी का नाम भी एक शीशे पर रखा गया है। दरअसल ‘हिंडनबर्ग’ नाम आज से करीब 86 साल पहले 6 मई 1937 की दुर्घटना के बाद चर्चा में आया। इस तारीख को जर्मनी का फेमस एयरशिप ‘हिंडनबर्ग’ अमेरिका के न्यू जर्सी के पास नेकहेर्स्ट नेवल एयरस्टेशन पर गिरने वाला था। लेकिन एयरशिप में डीएम गैस से भरे बैलून या गैस बैग फट गए और विमान में सवार कुल 97 में से 35 लोगों को जान पड़ गई। बाकी 200 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद हिंडनबर्ग एयरशिप से कूद कर जान बचाई जा सकती थी।
आरोप लगाया जाता है कि फेसबुक के गुब्बारों में पहले भी दुर्घटना हो सकती थी, ऐसे में यह दुर्घटना टाला जा सकता था। लेकिन एयरलाइंस ने इस अंतरिक्ष यान में जबरन 100 लोगों को बैठाया। हिंडनबर्ग कंपनी का दावा है कि इसी तरह के हादसों के इस्तेमाल पर वो शेयर बाजार में हो रही यूजर्स पर नजर रखते हैं और उनके पोल जाम हैं।
फाइनल में गुब्बरों से जुड़े कुछ और तथ्यों पर भी गौर किया-

ग्रैफिक्स: सत्यम परिडा
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