भरत गौरव, स्वामी शिवानंद सरस्वती: तमिलनाडु में जन्में स्वामी शिवानंद सरस्वती सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। वे योग, अध्यात्म, वेदांत, दर्शन और अन्य विषयों पर लगभग 300 से अधिक पुस्तकें लिखी गई हैं। स्वामी शिवानंद का जीवन आध्यात्मिकता के साथ सरलता का उदाहरण है। पुजारी ने आध्यात्म की राह तय की और संन्यास लेने के बाद ऋषिकेश में अपना जीवन व्यतीत किया। जानिए स्वामी शिवानंद के जीवन परिचय के बारे में।
स्वामी शिवानंद सरस्वती का जीवन परिचय
स्वामी शिवानंद सरस्वती का जन्म दक्षिण भारत मे ताम्रपर्णी नदी के पास पट्टामड़ाई नाम के गांव में 1887 को हुआ था। इनके बचपन का नाम कुप्पु स्वामी था। कुप्पु स्वामी के पिता का नाम श्री पी.एस. गहवर था जोकि एक तहसीलदार थे। माता का नाम पार्वती अम्मा था। माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृति के थे और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखते थे। इसका प्रभाव शिवानंद स्वामी पर भी पड़ा। बचपन से ही उन्होंने वेदांत का अध्ययन और अभ्यास किया और बाद में चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन भी किया। इसके बाद वे 1913 में मलाया में स्नैप के रूप में लोगों की सेवा करने लगे।
एक किताब पढ़ने के बाद शिवानंद स्वामी बने संत
कहा जाता है कि शिवानंद सरस्वती को एक आध्यात्मिक पुस्तक दी गई है। उन्होंने इस पुस्तक को पूरा पढ़ा और इसका प्रभाव यह हुआ कि उनके मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हुआ। हालांकि इससे पहले वे श्री शंकराचार्य, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकानंद का साहित्य भी पढ़ते थे और नियमित पूजा-पाठ भी करते थे। लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद अचानक मन में साधना का भाव उभर आया और वे 1922 में अपनी नौकरी छोड़कर मलाया से भारत वापस आ गए। घर पर अपना सामान रखा और घर के अंदर प्रवेश किए बिना ही तीर्थ स्थान के भ्रमण पर निकल पड़ें।
कुप्पु स्वामी से कैसे बनें स्वामी शिवानंद सरस्वती
तीर्थयात्रा करते हुए स्वामी शिवानंद ऋषिकेश पहुंचे। यहां वे कैलाशाश्रम के महंत स्वामी विश्वानन्द सरस्वती से मिले और इनके शिष्य बन गए। विश्वानन्द ने इन्हें सन्यास की दीक्षा दी और इस तरह कुप्पु स्वामी का नाम अलग-अलग स्वामी शिवान स्वामी स्वामी सरस्वती रखा।
ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद ने कड़ी आध्यात्मिक साधना की। वर्षा और धूप में बैठें मौन धारण करना व्रत करना और तपस्या जैसे कई साधना करने लगे। सन् 1932 में उन्होंने शिवान्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ (डाइसिन लाइफ सोसाइटी) संस्था की स्थापना की। आध्यात्म, दर्शन और योग पर उनकी लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को स्वामी शिवानंद सरस्वती ने महासमाधि ले ली।
स्वामी शिवानंद सरस्वती के अनमोल सुविचार
- यदि मन नियंत्रित किया जाता है, तो यह चमत्कार कर सकता है। यदि इसे वश में नहीं किया जाता है, तो यह अंतहीन दर्द और दर्द पैदा करता है।
- छोटे-छोटे कामों में भी दिल, दिमाग और आत्मा सब कुछ लगा। यही सफलता का राज है।
- आज आप जो कुछ भी हैं वह सब आपकी सोच का परिणाम है। आप आपके विचार से बने हैं।
- पिछली गलती और असफलता पर बिल्कुल भी न उलझेगा क्योंकि यह केवल आपके मन को खेद, खेद और अवसाद से भर देगा। बस भविष्य में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।
- यह संसार शरीर क्षुद्र है। यह संसार एक महान विद्यालय है, यह संसार आपका मूक शिक्षक है।
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