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- 25 साल तक रेलवे स्टेशन पर रहे स्वतंत्रता सेनानी का रंग था सांवला, इसलिए पति ने की दूसरी शादी, बेटे बहू की मौत; आज तक बैंक से पैसा नहीं आया
सितारपुर8 मिनट पहलेलेखक: राजेश साहू
88 साल की सत्यवती शुक्ला…सीतापुर में एक स्वतंत्रता सेनानी के घर जन्म हुआ। यही उनके जीवन की सबसे अच्छी बात रही। इसके अलावा पूरा जीवन घोर संघर्षों में बीता। 11 साल की उम्र में हुई शादी। सांवली इसलिए पति ने दूसरी शादी कर ली। सुसुराल में सूखी रोटी मिली। नमक-मिर्च भी नहीं। क्योंकि परिवार को लगता है कि इससे वह ज्यादा रोटी खाएंगे। सर्दी में कभी निःवस्त्र बनाकर शरीर पर पानी डाला जाता है तो हाथ और पांव के कुंभ पर लोढ़े से फोन किया जाता है।
गांव से निकलेकर वह सितारपुर रेलवे स्टेशन पहुंचें। 25 साल तक अनुक्रम के एक मंदिर में स्थिति। हुई पति की मौत। सो और बहू की मौत हो गई। बेटे के मुनाफे में 42 हजार रुपए रह गए। 6 साल से उसके लिए बैंक का चक्कर आ रहा है।
सत्यवती की कहानी जानने के लिए डेली भास्कर की टीम उनके घर पहुंचती है। पिता की यादों से लेकर खुद जिती उन सभी खोजों को उन्होंने फ्रैंक बताया। चलिए सब कुछ एक तरफ जानते हैं।
शादी के दो साल बाद ही पति ने दूसरी शादी कर ली
सत्यवती के पिता बिहारी त्रिवेदी स्वतंत्रता सेनानी थे। देश के लिए दूसरा विश्व युद्ध लड़ने। सत्यवती बताती हैं, “जब मैं 11 साल की थी तो मेरी शादी कचूरा गांव के शिवगुलाम शुक्ला के साथ कर दी गई। उस वक्त मुझे कुछ पता नहीं था। सुसुराल में कोई सिखाने वाला नहीं था। सब सिर्फ डांटने वाले थे।
मैं सांवली थी इसलिए परिवार के लोग मुझसे बात नहीं करते थे। शिवगुलाम को कहते हैं कि तुम दूसरी शादी कर लो। शिवगुलाम ने लोगों की बातों पर ध्यान दिया और एक होरी गर्ल से दूसरी शादी कर ली। उस वक्त मेरी शादी के सिर्फ दो साल हुए थे।”

दूसरी शादी होते ही पूरे परिवार का माहौल बदल गया। सत्यवती एक ही संकेत में पत्नी से नौकर बन गई। वह कहती हैं, “मेरी सौतन होरी और मेरा सुंदर था। परिवार के लोग उसे ज्यादा महत्व देते थे। मेरे पति मुझसे बात नहीं करते थे। मैं घर का नौकर बन गया। मेरे घर का पूरा फोटो धुलवाया गया। हर कपड़े मैं धुलती यानी जब सब खाना खा रहे थे तब मुझे सूखी रोटी दी गई थी। मोटी रोटी के साथ कभी नमक या फिर काली मिर्च नहीं दी गई।
सत्यवती यह सब भाव हुए भावुक हो जाती हैं। वह एक दिन की कहानी बयान करते हुए कहते हैं, “एक बार मुझे तीन दिन तक न खाने को रोटी दी गई और न ही पीने के लिए पानी दिया गया। यानी वह बिल्कुल काला था, लेकिन पत्ते इतने ज्यादा थे कि मैंने उसे दोनों हाथों से उठाया और पी लिया। उसी समय मेरी नंद ने देख लिया। उसने और बाकी सबने मिलकर मुझे गिराना शुरू कर दिया। दोनों हाथों की लकीरें और पैर पर मसाला पकड़ने वाले। बट्टे से मारा। मेरे हाथ-पांव के झाग को कूंच दिया गया। आज भी हाथ-पांव में कोई मच्छर नाखून नहीं है।”
सत्यवती लगातार पिटाई से टूट गईं। वह अपना मायके चला गया। पिता को अपने साथ हो रही ज्यादती के बारे में बताया। पिता नहीं पिघले। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि परमेश्वर उसी घर में रहना चाहे जैसा हो। अगर कोई भागीदार हुआ तो उसी घर में लाकर रख दिया जाएगा। पिता के इस बर्ताव के बाद सत्यवती के जीवन में कुछ नहीं बचा। वह वापस वहीं लौट आई जहां दुल्हन तो आई थी लेकिन नौकर बनी रही।
तमाम शोधों के बीच किस्मत ने थोड़ी सी करवट ली। आइए जानते हैं इसके बारे में।
दूसरी पत्नी की हुईं 9 बेटियां तो पति ने सत्यवती को लिया अपना
घोर संघर्षों के बीच सत्यवती जैसे-तैसे अपना जीवन काट रही थीं। उस समय उनकी सौतन को पवित्रता के रूप में एक के बाद एक बेटियां जा रही थीं। गांव के लोग ताने मारने लगे थे। इसका असर यह हुआ कि परिवार के बाकी लोग उनसे मोहभंग हो गए। सत्यवती कहती हैं, परिवार में ही एक ज्येष्ठ थे उन्होंने एक दिन मेरे पति को पकड़ा और उनसे कहा, “जो चीजें लेकर तुम्हारे पास आई उसे नौकरी दी और जो लगातार बेटियों को जन्म दे रही है, उसके सिर पर स्थितिए घूम रहे हो। इस बात का असर हुआ कि पति शिवगुलाम ने मुझे अपना लिया। उस वक्त मैं 33 साल की हो चुकी थी।”
सत्यवती आगे कहते हैं, “कुछ साल में मैंने दो बेटों को जन्म दिया। सुसुर रघुपति प्रसाद महोली मील से मिले हुए तो हमारे पति को नौकरी मिल गई। सब कुछ अच्छा चल रहा था इसलिए यही परिवार के बाकी लोग नहीं छोड़े। परिवार में। रोज साम होता है। कुछ दिन बाद हमें घर से निकाल दिया गया। मैं अपने दोनों बच्चों को लेकर सीतापुर आ गया। लेकिन यहां रहने का कोई ठिकाना नहीं था। तभी सीतापुर सिटी स्टेशन के बाहर शिव मंदिर दिखा। वोटर अपना ठिकाना बन गया।”

परिवार के अंदर जारी विवाद थमा ही नहीं। एक दिन इतना हंगामा बढ़ा कि सत्यवती के नंद के बेटे की मौत हो गई। हत्या का सचवती के दोनों बेटे और खुद के ऊपर लगा। पुलिस उठा ले गई। कुछ दिन बाद ही सत्यवती को छोड़ दिया। लेकिन बेटे जेल के अंदर ही हैं। तभी सत्यवती के पति शिवगुलाम की मौत हो गई। बड़े बेटे की पत्नी की भी हो गई मौत। कुछ दिन बाद जेल से बाहर आया बेटा कमलेश की भी जान चली गई। एक के बाद एक मौत ने सत्यवती को तोड़कर रख दिया।
बेटे की मौत हुई तो बैंक में सागर पैसा आज तक नहीं मिला
सत्यवती इन सब बातों को बोलते हुए बीच-बीच में कहते हैं, “बहुत दुख लाएंगे बेटा।” इस एक लाइन में उनका दर्द साफ नजर आता है। वह बताती हैं, “बड़े बेटे के खर्च में 42 हजार रुपये हैं। 2015 में बहू और बेटे की मौत के बाद हम उस पैसे को निकालने के लिए बैंक गए। तब बैंक ने हमसे बेटे का डेड सर्टिफिकेट लेटर मांगा। हमने उसे बनवाकर दिया। फिर वह रोज कोई न कोई कागज मांगते। 50 बार से ज्यादा गया हूं लेकिन आज तक वो पैसा नहीं मिला।”
हमने इलाहाबाद स्थित इलाहाबाद बैंक में जमा राशि को लेकर एंबेसडर की तो पता चला कि सत्यवती के परिवार का नाम ही सरकारी परिवार रजिस्टर में दर्ज नहीं है। बड़े खाते का अकाउंट अकाउंट तो है लेकिन बहू का अकाउंट अकाउंट आज तक नहीं पाया गया। अकाउंट ज्वाइंट था इसलिए दोनों का डेथ नहीं होगा। ऐसे में गांव के प्रधान और लेखपाल की अहम भूमिका हो जाती है जिसने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
सत्यवती 25 साल तक सीतापुर सिटी रेलवे स्टेशन की आउटिंग। रहने के लिए न कोई सरकारी आवास मिला और न ही कोई लाभ। छोटे बेटे का एक 14 साल का बेटा साथ रहता है। सत्यवती बताते हैं, पिछले साल उस बेटे ने मुझसे कहा, तुम्हारी जिंदगी तो गई दादी क्या मैं भी देखता रहूंगा? उसकी इस बात के बाद मैं उसके भाई के पास गया और एक घर बनने की बात कही। भाई ने कुछ पैसे देकर मदद की। मेरी बहन के बेटे रामजी ने। इसके बाद 4 महीने पहले ही हमने गांव में दो कमरे बनवा लिए। अब यही हमारा घर है।”

सत्यवती के संघर्षों की कहानी खत्म होती है। यदि उनका सरकारी लाभ मिलता है तो उनके जीवन का संघर्ष कम हो सकता है। आज भी वह शौच के लिए खेतों में जा रहे हैं।
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